क्या है साड़ी का इतिहास? जानिए क्यों पहनी जाती है साड़ी..

किसी भी जगह को एक अलग पहचान कुछ खास चीज़ों की वजह से मिलती है जैसे वहाँ की बोली,खाना,पीढ़ियों से चले आ रहे रीति रिवाज़ और पहनावा। और भारतीय पारंपरिक परिधान की पहचान “साड़ी” है । साड़ी भारतीय संस्कृति का एक बेहद ही प्राचीन हिस्सा है जिसका उल्लेख हमारे सबसे पुराने वेद पुराणों में से एक यजुर्वेद मे भी मिलता है जिसमे ऐसा बताया गया है कि किसी भी स्त्री को हवन मे बैठने के लिए साड़ी धारण करना अनिवार्य है।

प्राचीन काल मे संस्कृत भाषा का इस्तेमाल होता था और वेदो में लिखी संस्कृत भाषा मे “शाटिका  या सात्तिका ” का उल्लेख मिलता है जो की साड़ी का संस्कृत शब्द है ।

माना जाता है की साड़ी विश्व के सबसे लम्बे और प्राचीन परिधानों मे से एक है। यहाँ तक की सिंधु घाटी सभ्यता के समय में भी साड़ी पहनी जाती थी। और इस बात के प्रमाण हमें उस समय के आर्टिफैक्ट्स में देखने को मिलते हैं। साड़ी की लंबाई सभी परिधानों से ज्यादा है यह लगभग 5 से 6 गज लम्बी होती है और यह ब्लाउज या चोली और पेटीकोट के साथ पहनी जाती है। वहीं महाराष्ट्र में नौ गज की साड़ी पहनने का रिवाज है।

समय बदल गया और बदल गया साड़ी का स्वरूप जहाँ पहले सादी साड़ियों का चलन था वहीँ आज के समय में तरह तरह की डिज़ाइनर साड़ियां लाखों रूप रंग में उपलब्ध हैं जैसे कॉटन साड़ी ,सिल्क की साड़ियों में साउथ सिल्क, बनारसी सिल्क, कांजीवरम सिल्क आदि ।साड़ी पहनने के कई तरीके हैं जो भौगोलिक स्थिति और पारंपरिक मूल्यों और रुचियों पर निर्भर करते है। भारत में अलग-अलग शैली की साड़ियों में कांजीवरम साड़ी, बनारसी साड़ी, पटोला साड़ी और हकोबा मुख्य हैं। मध्य प्रदेश की चंदेरी, महेश्वरी, मधुबनी छपाई, असम की मूंगा रशम, उड़ीसा की बोमकई, राजस्थान की बंधेज, गुजरात की गठोडा, पटौला, बिहार की तसर, काथा, छत्तीसगढ़ी कोसा रशम, दिल्ली की रशमी साड़ियां, झारखंडी कोसा रशम, महाराष्ट्र की पैथानी, तमिलनाडु की कांजीवरम, बनारसी साड़ियां, उत्तर प्रदेश की तांची, जामदानी, जामवर एवं पश्चिम बंगाल की बालूछरी एवं कांथा टंगैल आदि प्रसिद्ध साड़ियाँ हैं।

साड़ी की शुरुआत

500 ईस्वी के आस-पास, गुप्त काल में साड़ी पहनने की शुरुआत हो चुकी थी. साड़ी शब्द की उत्पत्ती वेदों से हुई, संस्कृत में इसका एक अर्थ कपड़ा भी होता है. वेदों में 600 BC में भी साड़ी का ज़़िक्र था.धनवान औरतें चीन के सिल्क से बने साड़ी पहनती थी और साधारण घर की औरतें सूती साड़ी पहना करती थी.

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