Kedarnath Dham: आज श्रद्धालुओं के लिए खुले केदारनाथ धाम के कपाट, जयकारों से गूंजा मंदिर

Kedarnath Dham:  शिवपुराण में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख मिलता है. जहां महादेव स्वयं प्रकट हुए थे. इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक जगह केदारनाथ धाम है. उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में स्थित केदारनाथ धाम के कपाट 25 अप्रैल 2023 को खुले. छह माह बाद बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालू आते हैं. कभी-कभी तो श्रद्धालुओं के ऊपर मौसम की भी मार पड़ती है, लेकिन मौसम पर श्रद्धालुओं की आस्था भारी पड़ जाती है. आइए जानते है कि केदारनाथ धाम कपाट खुलने का समय और इससे जुड़ी जानकारी…

पिछले साल 27 अक्टूबर 2022 को बंद हुए केदारनाथ धाम के पट 25 अप्रैल 2023 को मेघ लग्न में सुबह 06 बजकर 20 मिनट पर खुले. इसी दिन से चारधाम यात्रा अगले 6 महीने तक चलेगी.

Kedarnath Dham: 

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6 महीने ही होते है केदारनाथ धाम के दर्शन
केदारनाथ धान बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ ही चार धाम और पंच केदार में से भी एक है. मान्यता है कि यहां शीतकाल ऋतु में जब 6 महीने के लिए मंदिर के कपाट बंद होते हैं तो पुजारी मंदिर में एक दीपक जलाते हैं. आश्चर्य की बात ये है कि कड़ाके की ठंड में भी ये ज्योत ज्यो की त्यों रहती हैऔर 6 महीने बाद जब यह मंदिर खोला जाता है तब यह दीपक जलता हुआ मिलता है. हर साल भैरव बाबा की पूजा के बाद ही मंदिर के कपाट बंद और खोले जाते हैं. कहते है कि मंदिर के पट बंद होने पर भगवान भैरव इस मंदिर की रक्षा करते हैं.

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा 

◼ पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध में पांडवों ने विजय प्राप्त कर अपने भाईयों की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे.

◼ पाप का प्राश्चित करने के लिए वह कैलाश पर्वत पर महादेव के पास पहुंचे लेकिन शिव ने उन्हें दर्शन नहीं दिए और अंतर्ध्यान हो गए. पांडवों ने हार नहीं मानी और शिव की खोज में केदार पहुंच गए.

◼ पांडवों के आने की भनक लगते ही भोलेनाथ ने बैल का रूप धारण कर लिया और पशुओं के झुंड में मिल गए.

◼ पांडव शिव को पहचान न पाए लेकिन फिर भीम ने अपना विशाल रूप ले लिया और अपने पैर दो पहाड़ों पर फैला दिए. सभी पशु भीम के पैर से निकल गए लेकिन बैल के रूप में महादेव ये देखकर दोबारा अंतरध्यान होने लगे तभी भीम ने उन्हें पकड़ लिया.

◼ पांडवों की भक्ति देखकर शिव प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर सभी पापों से मुक्त कर दिया. तब से ही यहां बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में शिव को पूजा जाता है.

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