उत्तराखंड के इस जिले में तीन बार मनाई जाती है दीपावली

नमिता बिष्ट

दीपों का पर्व दीपावाली इस साल 24 अक्टू़बर को मनाई जाएगी। इस बार विशेष संयोग है, जब नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली एक साथ मनाई जाएगी। जिसकी तैयारियां देशभर के साथ ही उत्तराखंड में भी शुरू हो गई हैं। लेकिन क्या आप जानते है कि उत्तराखंड में एक ऐसा जिला भी जहां तीन बार दीपावली का पर्व मनाया जाता है। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में……

टिहरी में मनाई जाती है तीन तरह की दीपावली
उत्तराखंड में गढ़वाल से लेकर कुमाऊं मंडल में अलग-अलग अंदाज में दीपावली मनाई जाती है। लेकिन पूरे देश में जहां कार्तिक की दीपावाली मनाई जाती है।वहीं टिहरी जिले में कार्तिक की दीपावाली के अलावा इगास और मंगशीर की दीपावाली भी धूमधाम से मनाई जाती है।

11 दिन बाद मनाई जाती इगास
जिले में कार्तिक की दीपावाली के 11 दिन बाद इगास दीपावाली मनाई जाती है। यह दीपावाली जिला मुख्यालय सहित चंबा, प्रतापनगर और आसपास के क्षेत्रों में धूमधाम से मनाई जाती है। जिसके पीछे स्थानीय ग्रामीण एक कहानी बताते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि क्षेत्र का एक व्यक्ति जो काफी प्रसिद्ध था वह जंगल में लकड़ी लेने गया और रास्ता भटक गया। 11 दिन बाद जब वह वापस आया तो लोगों ने दीपावली मनाई। तब से यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर गांव से बाहर रहने वाले लोग भी अपने घरों को पहुंचते हैं।

दीपावली के एक महीने बाद मंगशीर की दीपावली
वहीं कार्तिक की दीपावली के ठीक एक महीने बाद टिहरी के भिलंगना प्रखंड के बूढ़ाकेदार, जौनपुर और कीर्तिनगर के कई गांवों में मंगशीर की दीपावली की धूम देखने को मिलती है। मंगशीर की दीपावली को स्थानीय बोली में बड़ी बग्वाल कहा जाता है। इस मौके पर स्थानीय फसलों के व्यंजन बनाए जाते हैं।

बूढ़ाकेदार में गुरू कैलापीर देवता के नाम पर मनाई जाती दीपावली
बूढ़ाकेदार में इस दीपावली को गुरू कैलापीर देवता के नाम पर मनाया जाता है। इसके पीछे एक कहानी भी प्रचलित है। बताया जाता है कि कैलापीर देवता हिमांचल से भ्रमण पर निकले और उन्हें बूढ़ाकेदार बेहद पसंद आया। इसके बाद देवता यहीं रुक गए। इस दौरान ग्रामीणों ने खुशी जताते हुए लकड़ी जलाकर रोशनी से देवता का स्वागत किया। तब से यह दीपावली मनाई जाती है। मंगशीर की दीपावली पर ग्रामीण क्षेत्र की खुशहाली और अच्छी फसल के लिए देवता के साथ खेतों में दौड़ लगाते हैं।

वीरभड़ माधो सिंह भंडारी से जुड़ी कहानी
टिहरी जिले में कीर्तिनगर के मलेथा और जौनपुर के कुछ गांवों में भी यह दीपावली मनाई जाती है। लेकिन यहां इसे मनाने का कारण दूसरा है। कार्तिक के महीने वीरभड़ माधो सिंह भंडारी गोरखाओं के साथ युद्ध करने तिब्बत बार्डर पर गए थे और एक माह यानी मंगशीर में युद्ध लड़कर वापस आए थे, जिसके बाद से ग्रामीण इस दीपावली को मनाते आ रहे हैं। इस अवसर पर स्थानीय फसलों के कई पकवान तैयार किए जाते हैं।

इस बार छोटी और बड़ी दीपावली एक ही दिन
हिंदू पंचांग के अनुसार दीपावाली का पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। वहीं इस बार छोटी और बड़ी दीपावली एक ही दिन 24 अक्टूरबर को मनाई जाएगी। इससे पहले 23 अक्टूबर को धनतेरस मनाया जाएगा। इसमें धनवंतरि की पूजा, मां लक्ष्मी और कुबेर का पूजन और सोना, चांदी, बर्तन घरेलू सामान की खरीदारी करते हैं।

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