Ayodhya: अयोध्या में राम मंदिर के पुजारियों ने महाकाव्य रामायण और महाभारत को स्कूली पुस्तकों में शामिल करने की एनसीईआरटी पैनल की सिफारिश का स्वागत किया है। उन दिनों को याद करते हुए जब रामायण, महाभारत और भगवद गीता किताबों का हिस्सा हुआ करती थीं, पुजारियों ने कहा कि अतीत में कुछ सरकारों ने इन महाकाव्यों को पाठ्यक्रम से हटा दिया था।
आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि “ये रामायण, महाभारत, रहीम के दोहे, कबीर के दोहे, ये सब जब पढ़ाए जाएंगे तो बच्चों को अपने इतिहास और संस्कृति का ज्ञान होगा और जो हमारी संस्कृतियों से आने वाली पीढ़ियां दूर जा रही थी, कम से कम उन्हें ज्ञान होने लगेगा और अपने अराध्या के प्रति और अपने इतिहास के प्रति उन्हें पूर्ण जानकारी मिलने लगेगी।”
इसके साथ ही सरयू नित्य आरती के अध्यक्ष शशिकांत दास ने कहा, “एनसीईआरटी की सिफारिश वास्तव में अच्छी और सराहनीय है। जब तक स्कूलों में रामायण और महाभारत नहीं पढ़ाया जाएगा, तब तक बच्चों को हमारे इतिहास और संस्कृति के बारे में पता नहीं चलेगा। कुछ लोग रामायण पड़ते हैं लेकिन जब स्कूल के माध्यम से उनको पढ़ाया जाएगा तो उनको अर्थ भी बताया जाएगा।”
एनसीईआरटी के उच्च स्तरीय पैनल ने मंगलवार को सिफारिश की कि रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों को सामाजिक विज्ञान की पुस्तकों और कक्षा की दीवारों पर लिखी संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया जाना चाहिए। पिछले साल गठित सात सदस्यीय समिति ने सामाजिक विज्ञान पर कई सिफारिशें दी थीं, जो नई एनसीईआरटी पुस्तकों की नींव रखने के लिए महत्वपूर्ण निर्देशात्मक दस्तावेज है।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने अभी तक इन सिफारिशों पर कोई फैसला नहीं लिया है। आचार्य सत्येंद्र दास वेदांती के प्रधान पुजारी का कहना है कि “यह बहुत ही अच्छा सुझाव आया है क्योंकि पहले ये रामायण और महाभारत पढ़ाई जाती थी। लेकिन आज की तारीख में कुछ तथाकथित सरकारों ने इसे निकाल दिया था सिलेबस से। लेकिन ये रामायण, महाभारत, रहीम के दोहे, कबीर के दोहे, ये सब जब पढ़ाए जाएंगे तो बच्चों को अपने इतिहास और संस्कृति का ज्ञान होगा और जो हमारी संस्कृतियों से आने वाली पीढ़ियां दूर जा रही थी,कम से कम उन्हें ज्ञान होने लगेगा और अपने अराध्या के प्रति और अपने इतिहास के प्रति उन्हें पूर्ण जानकारी मिलने लगेगी।”
उन्होंने कहा कि “एनसीईआरटी की सिफारिश वास्तव में अच्छी और सराहनीय है। जब तक स्कूलों में रामायण और महाभारत नहीं पढ़ाया जाएगा, तब तक बच्चों को हमारे इतिहास और संस्कृति के बारे में पता नहीं चलेगा। कुछ लोग रामायण पड़ते हैं लेकिन जब स्कूल के माध्यम से उनको पढ़ाया जाएगा तो उनको अर्थ भी बताया जाएगा कि ये रामायण का अर्थ है, उनकी चौपाई का अर्थ है, चौपाई किसे कहते हैं, छंद किसको कहते हैं, दोहा किसे कहते हैं, इसका ज्ञान होगा।”