National Voters Day 2023: जानिए भारत में कोरे कागज से लेकर ईवीएम पर वोट डालने तक का इतिहास

नमिता बिष्ट

भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इस लोकतांत्रिक देश में सरकार बनाने में मतदाताओं की सबसे बड़ी और अहम भूमिका होती है। मतदाता अपने कीमती वोट से किसी भी पार्टी को पांच साल के लिए सत्ता में ला सकते हैं। इसलिए वोटरों को मतदान की तरफ जागरूक करने के लिए हर साल गणतंत्र दिवस के एक दिन पहले राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन देश में चुनाव आयोग की स्थापना हुई थी। जिसका काम भारतीय संविधान के मुताबिक देश में निपक्ष और सफल चुनाव करना है।

दरअसल देशभर में मतदान ईवीएम से किया जाता है और काफी कम वक्त में उसके नतीजे भी सामने आ जाते हैं। वहीं अब चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग सिस्टम को भी शुरू करने जा रहा है। लेकिन क्या आप जानते है कि भारतीय चुनाव आयोग ने भारत में कोरे कागज से मतदान कब करवाया था? तो आज हम आपको बताएंगे कि कोरे कागज से रिमोट वोटिंग तक का इतिहास और राष्ट्रीय मतदाता दिवस क्यों, कब से मनाने की शुरुआत हुई इस पूरे इतिहास के बारे में…….

भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना

भारत की आजादी के तीन साल बाद 1950 में 26 जनवरी को संविधान लागू किया गया था। जिसके एक दिन पहले यानी 25 जनवरी 1950 को चुनाव आयोग की स्थापना हुई थी। बता दें कि देश में जितने भी चुनाव हैं, उनको निष्पक्षता से संपन्न कराने की जिम्मेदारी भारत निर्वाचन आयोग  की होती है।

साल 1952 में हुआ देश में पहला चुनाव

देश में पहला चुनाव साल 1952 में हुआ था। उस समय ना तो ईवीएम थी और ना ही बैलेट पेपर था।  यानी आज जिस तरह बैलेट पेपर पर कई प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह होते हैं और एक मतपेटी, वैसा तब नहीं था। तब मतदान कोरे कागज पर किया जाता था।

कोरे कागज से किस्मत का फैसला

पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ ही होते थे। इन्हें कराना बहुत बड़ी चुनौती होती थी। प्रत्याशी का कोरे कागज से किस्मत का फैसला होता था। बता दें कि पहले चुनावों में हर पार्टी के लिए अलग-अलग रंग की मतपेटी बनाई गई। यानि जितने प्रत्याशी उतनी ही मतपेटी बनाई गईं। मतदाता अपनी मर्जी के हिसाब से अपने प्रत्याशी को चुनते थे। वोट डालने के लिए मतदाताओं को एक कोरा कागज दिया जाता था, जिसे वो इन मतपेटी में डालते थे।

बैलगाड़ी से होता था चुनाव प्रचार

देश के पहले चुनावों में चुनाव प्रचार बैलगाड़ी से होता था। क्योंकि उस समय आज की तरह संसाधन नहीं थे। अब निकाय चुनावों में भी प्रत्याशी गाड़ियों की कतारों से पर्चा भरने जाते हैं और सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक में उनकी चर्चा होती है। लेकिन पहले चुनाव के वक्त ना तो महंगी कारें थीं और ना ही सोशल मीडिया। ऐसे में प्रत्याशी बैलगाड़ी से जनता के बीच जाते थे और प्रचार करते थे। इतना ही नहीं जिस गांव में रात हो जाती थी, नेताजी वहीं रुकते थे और दूसरे दिन समर्थकों के साथ आगे बढ़ जाते थे।

1957 दूसरे चुनाव में हुआ थोड़ा बदलाव

आजाद भारत में दूसरे आम चुनाव 1957 में हुए। इस समय लोग पहले से ज्यादा जागरुक हो चुके थे। साथ ही चुनाव आयोग ने भी चुनावी प्रक्रिया में कई बदलाव किए। इस चुनाव में लकड़ी के डिब्बों पर उम्मीदवारों का नाम और चुनाव चिन्ह लिखा जाने लगा। लेकिन मतपत्र अभी भी कोरा कागज हुआ करता था। मतदाता अपने पसंदीदा प्रत्याशी के डिब्बे में कोरा कागज डालकर मतदान करते थे। बाद में इन कोरे कागज को गिनकर चुनाव के नतीजे आते थे।

1962 से शुरू हुआ बैलेट पेपर

चुनाव आयोग ने फिर इस प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया और पहली बार 1962 के विधानसभा चुनावों में प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह के बैलेट पेपर छापे गए। अब मतदाताओं को अपने पसंदीदा प्रत्याशी के नाम के सामने मुहर लगाकर मतपेटी में डालना होता था। चुनाव की ये प्रक्रिया लंबे वक्त तक चली। आज भी कई जगहों पर पंचायत चुनाव में इसका इस्तेमाल होता है।

1982 में पहली बार हुई ईवीएम से मतदान

इसके बाद धीरे-धीरे चुनाव प्रक्रिया में और बदलाव हुए और ईवीएम का दौर शुरू हुआ। देश में पहली बार 1982 में केरल के परावुर विधानसभा के 50 वोटिंग बूथ पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। हालांकि यहां हारे हुए प्रत्याशी ने हारने का कारण ईवीएम बताया और कोर्ट में इसके खिलाफ अपील की। कोर्ट ने फिर से चुनाव का आदेश दिया। इसके बाद कई सालों तक ईवीएम का इस्तेमाल नहीं हुआ।

2004 से देशभर में ईवीएम का चलन शुरू

दिसंबर 1988 में संसद में संसोधन करके रेप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल ऐक्ट, 1951 में सेक्शन 61ए जोड़ा गया और चुनाव आयोग को ईवीएम का इस्तेमाल करने का अधिकार मिल गया। इसके बाद 1998 में मध्य प्रदेश के 5, राजस्थान के 6 और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के 6 विधानसभा क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल हुआ। वहीं 2004 से देशभर में इसका चलन शुरू हो गया।

अब रिमोट वोटिंग सिस्टम लाने की तैयारी

ईवीएम शुरू होने के बाद इसमें भी बदलाव हुए। ईवीएम के साथ अब वीवीपैड भी जोड़ा गया है। इसमें जब आप चुनाव में ईवीएम में किसी कैंडिडेट के सामने बटन दबाकर उसे वोट करते हैं तो वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है। यह बताती है कि आपका वोट किस कैंडिडेट को डाला है। हाल ही में चुनाव आयोग ने रिमोट वोटिंग सिस्टम का प्रोटोटाइप भी जारी किया। उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले चुनावों में रिमोट वोटिंग सिस्टम से वोट डाले जाएंगे।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र

देश का हर वयस्क नागरिक एक मतदाता है जिसे मतदान करने का अधिकार है। मतदान करना अधिकार ही नहीं बल्कि एक कर्तव्य भी है। लेकिन यह भी कहा जाता है कि देश में लोग राजनीति के प्रति जितने जागरूक हैं उनका मतदान में उतना रुझान नहीं है। हालांकि संख्या के लिहाज से भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा मतदाता है और भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है,  मगर प्रतिशत के हिसाब से देखें तो भारत में मतदान कई लोकतंत्रों की तुलना में कम है। इसलिए मतदाओं को जागरुक करने के लिए राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है।

राष्ट्रीय मतदाता दिवस का इतिहास और उद्देश्य

आज देश और भारत निर्वाचन आयोग 13वां राष्ट्रीय मतदाता दिवस मना रहा है। इस दिवस को मनाने का फैसला 25 जनवरी 2011 से लिया गया और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने इसकी शुरुआत की थी। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को अपने मतदान के प्रति जागरुक करना और निष्पक्ष होकर मतदान करने को लेकर प्रेरित करना है।

इस साल 2023 की थीम

हर साल राष्ट्रीय मतदाता दिवस एक थीम के साथ मनाया जाता है। चुनाव आयोग ने इस साल 2023 की थीम “वोटिंग बेमिसाल है, मैं अवश्य वोट देता हूं” रखी है। जबकि साल 2022 में इस दिवस की थीम “समावेशी, सुगम एवं सहभागी निर्वाचन की ओर अग्रसर” करना रखा गया था।

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