Himachal Pradesh: मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हिमाचल प्रदेश किसान सभा के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। ये प्रतिनिधिमंडल किसानों को उनकी जमीन से कथित तौर पर अवैध रूप से बेदखल करने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा है। उनका दावा है कि ये कानून का उल्लंघन है। सुक्खू ने उन्हें भरोसा दिया कि उनकी सरकार उन्हें विस्थापित नहीं करेगी और उनकी शिकायतों को हल करने की कोशिश करेगी।
किसान सभा की ओर से पूर्व विधायक राकेश सिंघा ने यहां चौड़ा मैदान में मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा। बैठक ऐसे समय में हुई जब राज्य भर से सैकड़ों किसान और बागवान, अपनी-अपनी मांगों को लेकर शिमला में प्रदर्शन कर रहे थे। इन मांगों में गरीब भूमिहीन किसानों को पांच बीघा नियमित भूमि उपलब्ध कराना भी शामिल है। सुक्खू ने कहा कि किसानों और बागवानों का कल्याण सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता है।
उन्होंने सरकार की कुछ पहलों पर प्रकाश डालते हुए कहा, “बजट में कृषि ऋण ब्याज अनुदान योजना का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत किसानों की जमीन नीलाम होने से बच जाएगी।” सीएम ने कहा कि इस योजना के तहत राज्य सरकार तीन लाख रुपये के कृषि ऋण को चुकाने के लिए बैंकों के माध्यम से एकमुश्त निपटान नीति लाएगी। राज्य सरकार मूल राशि पर ब्याज का 50 प्रतिशत भुगतान करेगी और इस योजना पर 50 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
सुक्खू ने कहा कि वो किसानों की समस्याओं से अच्छी तरह से वाकिफ हैं और उनकी शिकायतों को हल करने का हर संभव प्रयास किया जाएगा। इससे पहले, किसानों ने पंचायत भवन से हिमाचल प्रदेश विधानसभा की ओर मार्च निकाला। मार्च विधानसभा के पास चौड़ा मैदान में संपन्न हुआ, जहां सीएम उनसे मिलने पहुंचे। रैली को संबोधित करते हुए सिंघा ने कहा कि किसानों की सभी बेदखली, कानून का उल्लंघन करके की जा रही है।
“पिछले 10 साल में, डीएफओ कोर्ट द्वारा सार्वजनिक परिसर अधिनियम के तहत हजारों बेदखली आदेश जारी किए गए थे और इन्हें हिमाचल प्रदेश के संभागीय आयुक्त और उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा गया था।” “हालांकि, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अब इन आदेशों को या तो रद्द कर दिया है या उन्हें समीक्षा के लिए हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय को वापस भेज दिया है। इसके बावजूद, बेदखली अब भी जारी है और राज्य के कई हिस्सों में कानूनी रूप से निर्धारित प्रक्रिया या उचित सीमांकन का पालन किए बिना आवासीय घरों को सील किया जा रहा है।”
उन्होंने कहा कि नौतोर नीति के तहत स्वीकृत भूमि पर बने घरों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। ‘नौतोर’ भूमि का मतलब शहरों के बाहर बिना इस्तेमाल वाली भूमि से है, जो संरक्षित वनों में नहीं है। अधिकारी इसके इस्तेमाल की मंजूरी देने का निर्णय ले सकते हैं।