Uttarkashi: देवभूमि उत्तराखण्ड में पौराणिक यात्रा अपने आप में अनोखी है और बहुरंगी है. इसलिए लगभग 5000 वर्षों में चली आ रही है, ऐसी यात्राओं ने उत्तराखण्ड से जुड़ी सम्पूर्ण भारत की संस्कृति को एक व्यापकता प्रदान की है। उत्तरकाशी में पंचक्रोशी यात्रा का माहत्त्व श्रद्धालुओं के लिए वरदान से कम नही। वैसे तो सालभर में हर दिन उत्तरकाशी में पंचकोशी यात्रा का महत्व है लेकिन पुर्णिमा के दिन वरूणा गंगा संगम और अस्सी गंगा संगम पर स्नान कर पंचकोशी यात्रा का आनंत गुण फल प्राप्त होता है।
ऐसी भी मान्यता है कि यह पांच कोश की यात्रा पूर्ण करके श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है और वरूणा क्षेत्र में श्रद्धालुजन जब त्रिवेणी संगम पर स्नान कर वरूणावत पर परिकर्मा करते हुये जब उस जल को वरूणायत पर्वत में विराजमा हजारों देवी देवताओं को अर्पित कर पूजा-पाठ करते हुए, अस्सी गंगा में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं तो इस मिलन को श्रद्धालु अस्सी पाँचकोशी से पुकारते हैं।
श्रद्धालु पवित्र मणिकर्णिका घाट और त्रिवेणी संगम से स्नान करके गंगाजल व पूजा की सामग्री लेकर यात्रा की ओर निकल पड़ते हैं, हज़ारों श्रद्धालु इस दिन मनोकामना पूर्ण होने के लिए व्रत भी रखते हैं। लोग बड़ेथी चुंगी में जलाभिषेक कर चुंगी से ऊंची चिमनी नुमा रास्ते से होकर बसुंगा के ज्ञानजा में पहुंचते है और मंदिर में पूजा अर्चना व जलाभिषेक कर आगे निकल पड़ते । यात्रा के समय पैदल चलकर मौन ब्रत करने के साथ अपने मंत्र जपते हुए भगवान का स्मरण करते हुए इस यात्रा का पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।