नमिता बिष्ट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 अक्टूबर को केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम के दर्शन के लिए आ रहे है। इस दौरान माणा गांव के लोगों से प्रधानमंत्री संवाद करेंगे। इसे लेकर ग्रामीणों में काफी उत्साह है। माणा गांव उत्तराखंड का एक खास गांव है। जो देश का अंतिम गांव कहलाता है। यह गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ कई अन्य कारणों से भी अपनी अलग पहचान रखता है। यही वजह है कि दूर-दूर से पर्यटक यहां घूमने आते हैं।
माणा गांव देश का अंतिम गांव
चमोली जिले में स्थित माणा गांव समुद्रतल से 10227 फीट की ऊंचाई पर सरस्वती नदी के किनारे बसा है। ये गांव बदरीनाथ से करीब तीन किमी ही दूरी पर है। बद्रीनाथ आने वाले हर पर्यटक माणा गांव जरूर पहुंचते हैं। इस गांव के आगे केवल भारतीय सेना की पोस्ट है। यहां एक प्रसिद्ध चाय की दुकान भी है जो कि भारत के आखिरी गांव में आखिरी दुकान के नाम से जानी जाती है।
मणिभद्र देव के नाम पर पड़ा माणा
माणा गांव में सरस्वती, वेदव्यास और गणेश मंदिर भी हैं। मान्यता है कि इस गांव का नाम मणिभद्र देव के नाम पर माणा पड़ा था। माणा का संबंध महाभारत काल से भी माना जाता है और भगवान गणेश से भी यहां की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। मान्यता है कि माणा गांव से होकर ही पांडव स्वर्ग गए थे।
माणा में पर्यटन स्थल व्यास पोथी
माणा में पर्यटन स्थल व्यास पोथी नामक स्थान है। यहां महाभारत के रचनाकार महर्षि वेद व्यासजी की गुफा है। इसके समीप ही गणेश गुफा है। मान्यता है की इसी गुफा में व्यासजी ने महाभारत को मौखिक रूप दिया था और गणेशजी ने उसे लिखा था। माना जाता है की उत्तराखंड में अवस्थित पांडुकेश्वर तीर्थ में अपनी इच्छा से राज्य त्याग करने के बाद महाराज पांडु अपनी रानियों कुंती और मादरी संग निवास करते थे। इसी स्थान पर पांचों पांडवों का जन्म हुआ था।
1962 भारत-चीन युद्ध से पहले तिब्बत व्यापार का केंद्र
साल 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले माणा तिब्बत से व्यापार का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। लेकिन युद्ध के बाद यहां से तिब्बत की आवाजाही पर रोक लगा दी गई। बता दें कि बदरीनाथ धाम मंदिर के कपाट बंद होने पर भगवान बदरीश को पहनाया जाने वाला घृत कंबल भी माणा गांव की महिलाएं ही तैयार करती हैं।
गांव में करीब 150 भोटिया परिवार
माणा गांव में भोटिया जनजाति के करीब 150 परिवार निवास करते हैं। गांव की महिलाएं ऊन का लव्वा (ऊन की धोती) और अंगुड़ी (ऊन का बिलाउज) पहनती हैं। यहां की महिलाएं हर वक्त अपने सिर को कपड़े से ढककर रखती हैं। किसी भी सामूहिक आयोजन में महिलाएं और पुरुष समूह में पौणा और झुमेलो नृत्य आयोजित करते हैं।
स्वरोजगार की मिसाल
माणा गांव के ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय हाथ और मशीन से ऊनी वस्त्रों का निर्माण करना है। शीतकाल में ग्रामीण भेड़-बकरियों की ऊन निकालकर उनकी कताई करते हैं और तकली या मशीन से उसके तागे बनाते हैं। इसके बाद वे टोपी, जुराब, हाथ के दस्ताने, कोट, शॉल, दन्न, मफलर आदि उत्पाद तैयार करते हैं। ग्रामीण आलू, राई, गोभी का भी अच्छा उत्पादन करते हैं। यात्राकाल में बदरीनाथ धाम के दर्शनों को पहुंचने वाले तीर्थयात्री माणा गांव के सैर-सपाटे पर पहुंचते हैं और गांव में ऊनी वस्त्रों की खरीदारी करते हैं। इसके साथ ही ग्रामीण औषधीय उत्पादों की बिक्री भी करते हैं। नवंबर से अप्रैल तक ठंड बढ़ने से ग्रामीण जनपद के निचले क्षेत्रों में चले जाते हैं। इसके बाद मई से अक्तूबर तक वे दोबारा अपने पैतृक गांव में रहते हैं।