उत्तराखंड के पारंपरिक अनाज का काला राजा है मंडुवा, पौष्टिकता से भरपुर है गुणों का खजाना, जानिए इसके लाभ

नमिता बिष्ट
देवभूमि उत्त्तराखंड प्राकृतिक दृष्टि से फूला फला हुआ राज्य है। बात अगर खान पान की हो तो देवभूमि की खान पान की अपनी एक विशेष परम्परा और स्थान रहा है। यहां अलग-अलग प्रकार के व्यंजनों के अलावा कई तरह के पापंरिक अनाज उगाये जाते हैं। इन्ही में से एक अनाज है, जिसे उत्तराखंड के पारंपरिक अनाज का काला राजा कहा जाता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं पर्वतीय अंचल में उगाया जाने वाला पौष्टिकता से भरपूर मंडुआ यानि कोदा की। जो पुराने समय से हमारे खान पान का हिस्सा रहा है। यह गरीब का भोजन भी कहा जाता है। यहीं वजह है कि मंडुआ सिर्फ रसोई में ही नहीं बल्कि हर उत्तराखंडी के दिल में भी बसा है। तो चलिए जानते है मंडुआ के गुणकारी लाभ के बारे में…..

मंडुआ को कई नाम से जाना जाता
मंडुआ का वैज्ञानिक नाम एलिसाइन कोराकाना है। जिसे हम फिंगर मिलेट कहते हैं। स्थानीय भाषाओं में इसे कोदा, क्वादु कहा जाता है। जबकि देश के अन्य राज्यों में इसे रागी, नागली इत्यादि नामों से जाना जाता है।

मंडुआ बारानाजा परिवार का मुख्य सदस्य
मंडुआ उत्तराखंड के बारानाजा परिवार का मुख्य सदस्य है। बता दें कि उत्तराखंड के बारानाज पौष्टिकता से भरपूर हैं। ये बारानाज कोदा, झंगोरा, गहथ, तिल, भट्ट, चौलाई, राजमा, लोबिया, तोर, उड़द, ज्वार, नौरंगी हैं जिन्हें उत्तराखंड में गेंहू और धान के साथ मिश्रित फसल के रूप में उगाते हैं। वहीं मंडुआ की बात करें तो उत्तराखंड में 136 हजार हेक्टेअर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है।

भारत विश्व का सबसे ज्यादा मंडुआ उत्पादक देश
वैसे तो मंडुआ मुख्यरूप से यूगांडा और इथोपिया का मोटा अनाज है। लेकिन अब भारत विश्व का सबसे ज्यादा मंडुआ उत्पादक देश है, जो विश्व मे 40 प्रतिशत का योगदान रखता है। भारत में उड़ीसा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र के साथ साथ उत्तराखंड में भी इसकी खेती की जाती है। इसके अलावा मंडुआ की खेती अफ्रीका से जापान और ऑस्ट्रेलिया तक की जाती है।

मंडुआ असिंचित भूमि के लिये एक उपयुक्त फसल
उत्तराखंड की 85 फीसदी भूमि असिंचित है। इस भौगोलिक स्थिति में भी मंडुआ की खेती के लिए उपयुक्त है। इसकी खास बात यह भी है कि चाहे दिन हो या रात यह प्रकाश संश्लेषण कर लेता है और अपनी मजबूत गहरी जड़ों से सूखा भी सहन करने में सामर्थ है।

बरसात में होती है मंडुवे की खेती
मंडुआ की खेती बरसात में होती है। जुलाई के प्रथम सप्ताह में इसकी पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। रोपाई के एक पखवाड़े से बीस दिन के भीतर पहली निराई और एक माह से 35 दिन के भीतर दूसरी निराई करनी होती है। फिर सितंबर तक छोटी घुमावदार बालियों में तैयार हो जाता है। इसके बाद इसकी बालियां सूखने से पहले ही कटाई के साथ खलियान में सुखाकर इसके दानों के ऊपर लगे सफेद परत को साफकर काले दानों के रूप में प्राप्त कर लिया जाता है। बाकी बची घास को जानवरों के चारे के रूप में संग्रहित किया जाता है।

पौष्टिकता से भरपूर है मंडुआ
उत्तराखंड में उगाया जाने वाला मंडुआ पौष्टिकता का खजाना है। इसमें औसतन 329 किलो कैलोरी, 344Mg कैल्शियम, 283 Mg फासफोरस, 7.3 ग्राम प्रोटीन, 1.3 ग्राम फैट, 72.0 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 3.6 ग्राम फाइबर, 104 Mg आयोडीन, 42 माइक्रो ग्राम कुल कैरोटीन पाया जाता है। इसके अलावा यह प्राकृतिक मिनरल का भी अच्छा स्रोत है।

मंडुआ स्वास्थ्य के लिए वरदान
• मंडुवे में Ca की मात्रा चावल, मक्की की अपेक्षा 40 गुना और गेहूं की अपेक्षा 10 गुना ज्यादा है। जिसकी वजह से यह हड्डियों को मजबूत करने में उपयोगी है।
• प्रोटीन, एमिनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट और फीनोलिक्स की अच्छी मात्रा होने के कारण इसका उपयोग वजन कम करने, पाचन शक्ति बढाने में और एंटी एजिंग में भी किया जाता है।
• इसका अधिकाधिक सेवन आंखों के रतौंधी रोग के निवारण में भी सहायक होता है।
• मंडुआ हृदय और मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए लाभदायक होता है।
• मंडुआ में पर्याप्त पोषक तत्व होने की वजह से यह कुपोषण से बचाने में भी मददगार होता है।
• मंडुवे का कम ग्लाइसिमिक इंडेक्स और ग्लूटोन के कारण टाइप-2 डायविटीज में भी कारगर माना जाता है।

बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए है गुणकारी
गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए भी मंडुआ बहुत गुणकारी है, क्योंकि इसमें अमीनो एसिड और प्रोटीन के गुण होते हैं जो बच्चे के शारीरिक और मानसिक सेहत का ध्यान रखते है। जापान जैसे विकसित देश में मंडुआ से बने पौष्टिक आहार शिशुओं को विशेषत दिए जाते हैं।

मंडुआ से बनने वाले अलग-अलग उत्पाद
पारंपरिक तौर पर उत्तराखंड में मंडुआ के आटे से केवल चून की रोटी, बाड़ी या पल्यो, सीडे़, डिंडके ही बनाए जाते थे, लेकिन धीरे धीरे इसके गुणों को पहचानते हुए इसकी पैदावार बढ़ाई जा रही है और नए नए प्रयोगों के साथ बाजार की मांग के अनुसार आज मंडुआ से बिस्कुट, ब्रेड, नमकीन, मिठाई, हलवा, उपमा, चिप्स, डोसा सब तैयार किया जा रहा है।

विश्वस्तर पर बढ़ रही मंडुवे की डिमांड
कभी कौड़ियों के भाव बिकने वाला मंडुआ आज बाजार में 40 से 60 रुपए प्रति किलो के भाव से बिक रहा है। अत्यधिक न्यूट्रेटिव गुण होने के कारण मंडुवे की डिमांड विश्वस्तर पर लगातार बढ़ती जा रही है। जैसे कि आज यूएसए, कनाडा, यूके, नॉर्वे, ऑस्ट्रेलिया, ओमान, कुवैत और जापान में इसकी बहुत डिमांड है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *