रुड़की की सड़कों पर भीख मांगने वाला मासूम निकला करोड़पति

नमिता बिष्ट

कहते हैं किस्मत जब मेहरबान तो फर्श से अर्श पर पहुंचने में वक्त नहीं लगता। जी हां, आज हम आपको एक ऐसे मासूम की किस्मत के बारे में बताने जा रहे है, जिसने नन्हीं सी उमर में हंसती खिलखिलाती दुनिया को उजड़ते देखा। दो वक्त की रोटी के लिए कभी चाय की दुकान पर जूठे बर्तन धोने तो कभी दूसरों के आगे हाथ फैलाकर अपना पेट भरना। लेकिन अचानक से उसकी जिंदगी में ऐसा करिश्मा हुआ कि जिसे देखकर हर कोई हैरान है।

करोड़ों की पुश्तैनी जायदाद का मालिक बन गया

बता दें कि अकीदत की नगरी पिरान कलियर में यह कोई कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है। बेसहारा घूमने वाले एक साधारण से शाहजेब को न सिर्फ उसका खोया हुआ परिवार मिल गया, बल्कि वह अपने करोड़ों की पुश्तैनी जायदाद का मालिक भी बन गया।

अब्बू की मौत के बाद से दुश्वारियों में बदली जिंदगी

सहारनपुर के नागल स्थित डीपीएस स्कूल में किताबों के बीच भविष्य का सपना देख रहे शाहजेब की जिंदगी अब्बू की मौत के बाद से दुश्वारियों में बदलती चली गई। दरअसल यूपी के जिला सहारनपुर के गांव पंडोली में रहने वाली इमराना पति मोहम्मद नावेद के निधन के बाद 2019 में अपने ससुराल वालों से नाराज होकर अपने मायके यमुनानगर चली गई थी। वह अपने साथ करीब छह साल के बेटे शाहजेब को भी ले गई थी। जिसके बाद वह कलियर में आकर रहने लगी।

कोरोना ने भी शाहजेब को मां इमराना से किया जुदा

कोरोना काल में कलियर में शाहजेब की मां इमराना की भी मौत हो गई। इसके बाद शाहजेब अनाथ हो गया और उसकी जिंदगी की दुश्वारियां और बढ़ गईं। उसके पास न रहने को घर था और न खाने को दो वक्त की रोटी का कोई इंतजाम। हालात ने उसे होटलों में झूठे बर्तन धोने और सड़कों पर भीख मांगने वाला बना दिया। उधर  दादा मोहम्मद याकूब बेटे के गुजरने, बहू और पोते के चले जाने से गहरे सदमे में आ गए और उनका भी इंतकाल हो गया।

छोटे दादा शाह आलम की तलाश हुई साकार

इसी बीच शाहजेब के छोटे दादा शाह आलम ने अपने पोते और बहू की तलाश शुरू कर दी। साथ ही इंटरनेट मीडिया पर एक फोटो भी डाला गया। जिसके बाद गुरुवार को कलियर आए शाह आलम के एक दूर के रिश्तेदार ने उसे पहचान लिया और उसने शाह आलम को इस बात की सूचना दी। जिसके बाद शाह आलम अपने पोते को साथ ले गए।

दुनिया से जाते-जाते दादा ने किया इंसाफ

बता दें कि हिमाचल में सरकारी शिक्षक रह चुके दादा मोहम्मद याकूब ने बेटे के बाद उसकी निशानी को ढूंढने को बहुत जद्दोजहद की। कोई फायदा नहीं हुआ और उनके गम में दादा भी चल बसे। लेकिन वह दुनिया से जाते-जाते इंसाफ कर गए और अपनी आधी जायदाद मासूम पोते के नाम पर कर दी। दादा ने अपनी वसीयत में लिखा कि जब उसका पोता आता है तो आधी जायदाद उसे सौंप दी जाए। हालांकि शाहजेब की जिंदगी में अब खुशियां तो लौटी है, पर उसके साथ इन पलों को जीने के लिए उसकी अम्मी, अब्बू और दादू का खिलखिलाता चेहरा नहीं है।

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