एक माह बाद जौनसार-बावर में बूढ़ी दिवाली का जश्न शुरू, जानिए क्या है परंपरा

देहरादून। देशभर में अपनी अनूठी संस्कृति के लिए विख्यात देहरादून जनपद के सुदूरवर्ती जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में तीज-त्योहार मनाने का अंदाज और परंपराएं निराली हैं। यहां दिवाली का त्यौहार भी बड़े भी अनोखे तरीके से मनाया जाता है। जौनसार-बावर में देश की दीवाली के एक माह बाद पांच दिवसीय बूढ़ी दीवाली मनाई जाती है। मंगलवार यानी 22 नवंबर आज से  जनजातीय क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली का जश्न शुरू हो गया है।

आज मनाई जाएगी छोटी दिवाली

आज छोटी दिवाली मनाने के साथ ही पांच दिवसीय बूढ़ी दीवाली का जश्न मनाया जा रहा है। हर घर में पारंपरिक व्यंजन चिउड़ा मूड़ी तैयार की जा रही है। बूढ़ी दीवाली की तैयारी में लोग पूरे एक सप्ताह से जुट जाते हैं। इसकी तैयारी को लेकर साहिया बाजार में लोगों ने जमकर खरीदारी की। बाजार में सुबह से ही लोगों की भीड़ लगनी शुरू हो गईजो दोपहर तक खासी बढ़ गई। मंगलवार को छोटी दिवाली के बाद बुधवार को बड़ी दिवाली मनाई जाएगी। इसे भीरूडी भी कहा जाता है।

ईको फ्रेंडली दीपावली

हालांकिक्षेत्र के करीब डेढ़ सौ से अधिक गांवों में देशवासियों के साथ नई दीवाली मनाने की शुरुआत भी कुछ सालों पहले हो चुकी है। पर अंदाज वही पुरानी इको फ्रैंडली दीवाली का ही है। यहां की दीवाली पूरे देश को प्रदूषणरहित दीवाली मनाने का संदेश भी देती है। यहां सिर्फ भीमल की लकड़ी की मशाल जलाई जाती हैजिसके बाद जश्न शुरू हो जाता है। जौनसार-बावर परगने के सीमांत तहसील त्यूणीचकराता और कालसी तीनों तहसील से जुड़े करीब चार सौ गांवों और इतने ही तोक-मजरों को 39 खतों में बांटा गया है।

पहाड़ी बूढ़ी दीवाली मनाने की परंपरा

दीवाली मनाने के बाद पहाड़ में बूढ़ी दीवाली मनाने के पीछे लोगों के अपने अलग तर्क हैं। जनजाति क्षेत्र के बड़े-बुर्जुर्गों की माने तो पहाड़ के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की सूचना देर से मिलने के कारण लोग एक माह बाद पहाड़ी बूढ़ी दीवाली मनाते हैं। जबकि अधिकांश लोगों का मत है कि जौनसार-बावर व बिन्हार कृषि प्रधान क्षेत्र होने की वजह से यहां लोग खेतीबाड़ी के कामकाज में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं। जिस कारण वह इसके ठीक एक माह बाद बूढ़ी दीवाली का जश्न परपंरागत तरीके से मनाते हैं। यहां पहले पहले दिन छोटी दीवालीदूसरे दिन रणदयालातीसरे दिन बड़ी दीवालीचौथे दिन बिरुड़ी व पांचवें दिन जंदौई मेले के साथ दीवाली पर्व का समापन होता है।

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