Sawan Somwar: आज सावन का दूसरा सोमवार है, सुबह से ही शिव मंदिरो में भक्तो की भारी भीड़ देखने को मिल रही है. माना जाता है कि सावन के सोमवार में भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं
आज के दिन भक्त भोलेनाथ के लिए व्रत रखते हैं और भगवान शिव पर बेलपत्र चढ़ाकर, पंचामृत से शिव जी का जलाभिषेक भी करते हैं, सावन के दूसरे सोमवार के दिन शिवभक्त शिवजी की पूजा करने के साथ ही ‘ऊं नम: शिवाय’ मंत्र का जाप भी जरूर करें। सावन में शिवलिंग का अभिषेक बहुत फलदाई माना गया है, श्रद्धालु इस दिन शिवालयों में पहुंचकर भगवान शिव का जलाभिषेक और पूजा-अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि सावन सोमवार के दिन व्रत रख कर महादेव की आराधना करने से भक्तों के सभी कष्ट मिट जाते हैं।
Sawan Somwar:
सोमवार का महत्व:
माना जाता है कि सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय होता है, इस माह के सभी सोमवार बहुत उत्तम होते हैं। इसके साथ ही जो भी भक्त इन दिनों सच्चे मन से व्रत रखकर भगवान भोलेनाथ की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस बार सावन के दूसरे सोमवार पर 4 शुभ योग का निर्माण हो रहा है, दूसरे सोमवार के दिन अमावस्या तिथि भी पड़ रही है. ऐसे में इसे सोमवती अमावस्या कहा जाएगा.
सावन में 8 सोमवार:
सावन के महीने में इस साल कई दुर्लभ योग बन रहे हैं, सावन महीने में ही इस बार अधिकमास लगा है, अधिक मास लगने से इस बार सावन महीने की अवधि बढ़कर 59 दिन तक की हो गई है. इसलिए इस साल सावन में कुल 8 सोमवारी व्रत रखे जाएंगे.
Sawan Somwar: शिवजी की आरती :
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥