संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस आज, यहां देखें उनके महान विचार

नमिता बिष्ट 

संविधान के जनक बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की आज पुण्यतिथि है। हर साल 6 दिसंबर के दिन बाबा साहब अम्बेडकर को श्रद्धांजलि और सम्मान देने के लिए उनकी पुण्यतिथि पर महापरिनिर्वाण दिवस मनाया जाता है। भीमराव आंबेडकर को एक कानून के विशेषज्ञ, अर्थशास्त्र के ज्ञाता, संविधान निर्माता के अलावा उन्हें दलितों का उद्धार करने वाला मसीहा भी माना जाता है। अस्पृश्यता और जाति प्रतिबंध जैसी सामाजिक बुराइयों को मिटाने के अंबेडकर के प्रयासों के बारे में भला कौन नहीं जानता। उनकी बातें आज भी युवाओं के लिए प्रेरणादायक साबित हो रही हैं।  आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर आइए जानें उनके जीवन से जुड़ी ऐसी बाते जिनके बारे में कम लोग जानते हैं.

भारतीय संविधान के वास्तुकारबाबासाहेब अंबेडकर’

‘बाबासाहेब अंबेडकर’ के नाम से लोकप्रिय, बाबा साहेब भारतीय संविधान के वास्तुकार थे। वह प्रारूपण समिति के उन सात सदस्यों में भी थे, जिन्होंने स्वतंत्र भारत के संविधान का प्रारूप तैयार किया था। डॉ. अम्बेडकर का धर्मांतरण जातिगत असमानता के दमन का एक प्रतीकात्मक विरोध था। उन्होंने सैकड़ों हजारों महार अछूत जाति के साथ बौद्ध धर्म में परिवर्तित होकर भारत में बौद्ध धर्म का चेहरा बदल दिया था।

सकपालसेअंबेडकरबने बाबा साहेब

डॉ. भीमराव अंबेडकर यानी डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर का जन्मदिन 14 को 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। वो अपने माता-पिता भीमाबाई सकपाल और रामजी की चौदहवीं संतान थे। सकपाल उनका उपनाम था और अंबावडे उनका गांव का नाम था। सामाजिक-आर्थिक भेदभाव और समाज के उच्च वर्गों के दुर्व्यवहार से बचने के लिए, उन्होंने ब्राह्मण शिक्षक की मदद से अपना उपनाम “सकपाल” से “अंबेडकर” में बदल दिया।

बचपन से ही जातिगत भेदभाव का अनुभव

बता दें कि अंबेडकर ने बचपन से ही जातिगत भेदभाव का अनुभव किया। भारतीय सेना से सेवानिवृत्ति के बाद भीमराव के पिता महाराष्ट्र के सतारा में बस गए। भीमराव का दाखिला स्थानीय स्कूल में कराया गया। जहां उन्हें कक्षा में एक कोने में फर्श पर बैठना पड़ता था और शिक्षक उनकी कॉपी को भी नहीं छूते थे। तमाम कठिनाइयों के बावजूद भीमराव ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1908 में बम्बई विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की।

1913 में भीमराव अंबेडकर के पिता का निधन

1913 में भीमराव अंबेडकर ने अपने पिता को खो दिया। उसी साल बड़ौदा के महाराजा ने भीमराव अंबेडकर को छात्रवृत्ति प्रदान की और उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजा। अमेरिका से अंबेडकर अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान का अध्ययन करने के लिए लंदन गए। वे बैरिस्टर बने और विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

चुने गए प्रारूप समिति के अध्यक्ष

1947 में जब भारत आज़ाद हो गया, तब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को, जो बंगाल से संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुने गए थे, अपने मंत्रिमंडल में कानून मंत्री के रूप में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। संविधान सभा ने संविधान का मसौदा तैयार करने का काम एक समिति को सौंपा और अंबेडकर को इस प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। फरवरी 1948 में  अंबेडकर ने भारत के लोगों के सामने मसौदा संविधान प्रस्तुत किया। जिसे 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था।

1955 में भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना

1950 में अंबेडकर ने बौद्ध विद्वानों और भिक्षुओं के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका की यात्रा की। अपनी वापसी के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म पर एक किताब लिखने का फैसला किया और जल्द ही खुद को बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर लिया। अंबेडकर ने 1955 में भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना की। उनकी पुस्तक “बुद्ध और उनका धम्म” मरणोपरांत प्रकाशित हुई थी।

बाबा साहेब ने अपनाया बौद्ध धर्म

24 मई 1956 को बुद्ध जयंती के अवसर पर उन्होंने बम्बई में घोषणा की कि वे बौद्ध धर्म अपना लेंगे। 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने अपने कई अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को अपना लिया। उसी दिन अंबेडकर ने अपने लगभग पांच लाख समर्थकों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित करने के लिए एक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया।

बुद्ध और उनका धम्मपर लिखी किताब

अंबेडकर ने चौथे विश्व बौद्ध सम्मेलन में भाग लेने के लिए काठमांडू की यात्रा की। उन्होंने 2 दिसंबर, 1956 को अपनी अंतिम पांडुलिपि, “द बुद्धा या कार्ल मार्क्स” को पूरा किया। अंबेडकर ने खुद को भारत में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने “बुद्ध और उनका धम्म” शीर्षक से बौद्ध धर्म पर एक किताब लिखी। उनकी एक और किताब है “रिवोल्यूशन एंड काउंटर रेवोल्यूशन इन इंडिया”।

डॉ भीमराव आंबेडकर के प्रेरणादायक महान विचार

  • आदि से अंत तक हम सिर्फ एक भारतीय है।
  • स्वधतंत्रता का अर्थ साहस है, और साहस एक पार्टी में व्यक्तियों के संयोजन से पैदा होता है।
  • शिक्षा महिलाओं के लिए भी उतनी ही जरूरी है जितनी पुरषों के लिए।
  • ज्ञान हर व्‍‍यक्ति के जीवन का आधार है।
  • राजनीतिक अत्याचार, सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है। समाज को बदनाम करने वाले सुधारक सरकार को नकारने वाले राजनेता की तुलना में अधिक अच्छे व्यक्ति हैं।
  • महान प्रयासों को छोड़कर इस दुनिया में कुछ भी बहुमूल्य नहीं है।
  • एक सफल क्रांति के लिए यह आवश्यक नहीं है कि असंतोष हो। जो आवश्यक है वह हैं न्याय, आवश्यकता, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के महत्व पर गहन और गहन विश्वास।
  • कुछ लोग सोचते हैं कि धर्म समाज के लिए आवश्यक नहीं है। मैं यह दृष्टिकोण नहीं रखता। मैं धर्म की नींव को समाज के जीवन और प्रथाओं के लिए आवश्यक मानता हूं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *