उत्तराखंड: यहां दशहरे पर नहीं जलता रावण, दो गांवों के बीच होता है गागली युद्ध; जानिए

नमिता बिष्ट

दशहरे को अच्छाई पर बुराई का प्रतीक माना जाता है। दशहरे के दिन रावण का पुतला जलाकर इस त्योहार को मनाया जाता है। लेकिन उत्तराखंड में एक ऐसी जगह है जहां दशहरे के दिन रावण दहन नहीं किया जाता है बल्कि पश्चाताप करने के लिए एक ऐतिहासिक युद्ध लड़ा जाता है। जी हां हम बात कर रहे है देहरादून जिले के चकराता के कालसी ब्लॉक की। यहां दो गांवों उत्पाल्टा और कुरोली में इस दिन गागली युद्ध लड़ा जाता है। खास बात यह है कि युद्ध में न तो कोई हारता है और न ही विजयी होता है। तो चलिए जानते है क्या है यह अनोखी परंपरा.

जौनसार-बावर में नहीं जलाया जाता रावण
जनजाति क्षेत्र जौनसार में गागली युद्ध अब परंपरा का हिस्सा बन चुका है। गागली युद्ध दशहरे पर आयोजित किया जाता है। जौनसारी बोली में इसे पाइंते कहा जाता है। दशहरे के दिन कालसी के दो गांव उत्पाल्टा और कुरोली गांव के ग्रामीण गागली युद्ध खेलते हैं।
ये है इस युद्ध की कहानी
गागली युद्ध को पश्चाताप के रूप में खेला जाता है और यह पश्चाताप दो बहनों की मौत से लेकर जुड़ा हुआ है। एक किवदंती के अनुसार उत्पाल्टा गांव की दो बहनें रानी और मुन्नी क्याणी नामक स्थान पर कुएं से पानी भरने गई थीं। इस दौरान रानी कुएं में गिर गई। जब मुन्नी ने घर पहुंचकर यह बात बताई तो सबने मुन्नी पर ही रानी को कुएं में धक्का देने का आरोप लगाया।

दशहरे के दिन बहनों की मूर्तियां कुएं में विसर्जित
इससे दुखी होकर मुन्नी ने भी कुंए में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। जिसके बाद ग्रामीणों को अपने किए पर दुख और पछतावा हुआ। तभी से इस घटना को पश्चाताप के रूप में पाइंता यानी दशहरे से दो दिन पहले मुन्नी और रानी की मूर्तियों की पूजा की जाती है। इसके बाद दशहरे के दिन दोनों की मूर्तियां कुएं में विसर्जित की जाती हैं। बता दें कि इस कलंक से बचने के लिए उत्पाल्टा और कुरोली के ग्रामीण हर साल पाइंता पर्व पर गागली युद्ध का आयोजन कर पश्चाताप करते हैं।

अरबी के पत्तों और डंठलों से होता है युद्ध
दिलचस्प बात तो यह है कि अरबी के पत्तों और डंठलों से गागली युद्ध लड़ा जाता है। इसमें किसी पक्ष की हार या जीत नहीं होती है बल्कि ये युद्ध तो सिर्फ पश्चाताप के लिए लड़ा जाता है। युद्ध के दौरान ग्रामीण सार्वजनिक स्थल पर इकट्ठा होते हैं और ढोल-नगाड़ों-रणसिंघे की थाप पर हाथ में गागली के डंठल और पत्तों को लहराते हुए सामूहिक रूप से नृत्य करते हैं और युद्ध समाप्त होने पर ग्रामीण गले मिलकर एक दूसरे को पर्व की बधाई देते हैं।

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