Uttarakhand: उत्तराखंड में जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी को मिली मंजूरी

Uttarakhand: उत्तराखंड सरकार की धामी सरकार ने हाल ही में भू-तापीय ऊर्जा के दोहन के लिए जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी 2025 को मंजूरी दे दी है। यह निर्णय ऊर्जा क्षेत्र में एक नई दिशा की ओर संकेत करता है, जहां राज्य हिमालयी क्षेत्र में स्थित प्राकृतिक गर्म जल स्रोतों की ऊर्जा क्षमता को बिजली उत्पादन, हीटिंग, कूलिंग और जल शुद्धिकरण जैसे विभिन्न प्रयोजनों में इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है।

इस नीति के तहत राज्य में जियोथर्मल ऊर्जा के वाणिज्यिक उपयोग की अनुमति दी जाएगी और इसके लिए निजी व सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को प्रतिस्पर्धी बोली के जरिए अनुमति दी जाएगी। शुरुआती दो परियोजनाओं को 50 प्रतिशत तक की वित्तीय सहायता देने का प्रस्ताव भी नीति में शामिल है।

उत्तराखंड में लगभग 40 स्थानों पर भू-तापीय स्रोतों की पहचान की गई है, जिनमें बद्रीनाथ, तपोवन, माणिकरण और यमुनोत्री जैसे स्थल प्रमुख हैं। सरकार का मानना है कि इन स्थलों पर सतह के पास ही गर्म जल की उपलब्धता और तापमान में स्थायित्व होने के कारण इन्हें ऊर्जा स्रोत के रूप में विकसित किया जा सकता है। इस नीति का उद्देश्य केवल विद्युत उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि राज्य की ऊर्जा आत्मनिर्भरता, पर्यटन, ग्रामीण विकास और पर्यावरण संरक्षण से भी इसे जोड़ा गया है। नीति के कार्यान्वयन में उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण (यूरेडा) और उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (यूजेवीएनएल) की भूमिका प्रमुख होगी।

उत्तराखंड की जियोथर्मल नीति में ऊर्जा के नए विकल्प की संभावना तो है लेकिन इसके साथ यह आवश्यक हो जाता है कि राज्य सरकार केवल आर्थिक लाभ के चश्मे से इस परियोजना को न देखे बल्कि इसके भूगर्भीय, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों की भी गहराई से समीक्षा करे। वरना ऊर्जा का यह नया स्रोत हिमालय की स्थिरता को चुनौती दे सकता है और भविष्य में इसका खामियाजा राज्य की पारिस्थितिक सुरक्षा को भुगतना पड़ सकता है।

राज्य सरकार ने नीति में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए वित्तीय छूट, भूमि पट्टा और सब्सिडी की घोषणा की है लेकिन पर्यावरणीय और सामाजिक सुरक्षा उपायों पर अपेक्षित स्पष्टता नहीं दिखाई देती। हिमालयी क्षेत्रों में हाल के वर्षों में आपदाओं और अस्थिर भूगर्भीय गतिविधियों के जो उदाहरण सामने आए हैं, वे यह संकेत देते हैं कि विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाए बिना शुरू की गई परियोजनाएं दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा सकती हैं। ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति जरूरी है लेकिन उसके लिए स्थानीय पारिस्थितिकी और समुदायों को जोखिम में डालना एक स्थायी समाधान नहीं हो सकता।

2020 में जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल मैनेजमेंट में प्रकाशित एक पीयर-रिव्यू शोध पत्र “क्वाटिटेटिव एसेसमेंट ऑफ द एनवॉयरमेंटल रिस्क ऑफ जियोथर्मल एनर्जी ” के मुताबिक भू-तापीय परियोजनाओं से उत्पन्न मुख्य जोखिमों में कृत्रिम भूकंपीय गतिविधि, भूमिगत जल स्रोतों का रासायनिक प्रदूषण, भूमि धंसाव और विषैली गैसों का उत्सर्जन शामिल हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि जब भूमिगत चट्टानों में अत्यधिक दबाव से जल या भाप प्रवाहित की जाती है, तो उससे चट्टानों में तनाव उत्पन्न होता है जो कई बार भूकंपीय झटकों को जन्म दे सकता है। स्विट्जरलैंड के बेजल और दक्षिण कोरिया के पोहांग जैसे देशों में ऐसी घटनाएं पहले सामने आ चुकी हैं जहां जियोथर्मल ड्रिलिंग के कारण स्थानीय भूकंप आए और परियोजनाओं को बंद करना पड़ा।

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