वेडिंग डेस्टिनेशन के लिए पहली पसंद बना ‘त्रियुगीनारायण’ मंदिर

जनपद रुद्रप्रयाग के विकासखंड ऊखीमठ में स्थित शिव पार्वती विवाह स्थल त्रियुगीनारायण देश प्रदेश के सभी लोगों की शादी के लिए पहली पसंद बनता जा रहा है।जनपद की सीमांत ग्रामपंचायत त्रियुगीनारायण में स्थित भगवान त्रियुगीनारायण मन्दिर जहां मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती ने भगवान नारायण को साक्षी मानकर पवित्र अग्नि के फेरे लेकर शादी के बंधन में बंधे थे। आज इसी को देखते हुए पूरे भारत से नवयुगल इस पवित्र स्थान पर शादी करने के लिए पहुंच रहे हैं। इस साल नवरात्रों से अभी तक  शिव पार्वती विवाह स्थल में 30 से अधिक नवयुगल जोड़े शादी के बंधन में बंध चुके हैं। इस पवित्र स्थान में गढ़वाली परिवेश में मंगल गीतों के साथ शादियां सम्पन्न की जाती हैं। तीर्थपुरोहित समिति त्रियुगीनारायण के सचिव सर्वेशनन्द भट्ट ने बताया कि भगवान नारायण की कृपा ही है कि नवयुगल भारत के हर प्रदेश से यहां शादी के बंधन में बंधने आ रहे हैं, उन्होंने बताया कि अभी 25 से अधिक रजिस्ट्रेशन शादी के लिए 2023 तक हो गए हैं तथा अभी कुछ होने बाकी हैं। उन्होंने बताया कि वहीं त्रियुगीनारायण में शादियां जीएमवीएन तथा प्राइवेट वेडिंग प्लानरों के द्वारा सम्पन्न कराई जा रही हैं।

त्रिजुगीनारायण मंदिर की ये है धार्मिक मान्यता

मान्यताओं के अनुसार रूद्रप्रयाग जनपद के मैखंडा परगने में मंदाकिनी क्षेत्र के मंदाकिनी सोन और गंगा के मिलन स्थल त्रिजुगीनारायण मंदिर में शिवरात्रि के पवित्र दिन भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था। भगवान शिव के विवाह को लेकर कई तरह की कथाएं अलग-अलग धर्म ग्रंथों में प्रचलित हैं। माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह का प्रमाण है यहां जलने वाली अग्नि की ज्योति जो त्रेतायुग से निरंतर जल रही है। कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती से इसी ज्योति के सामने विवाह के फेरे लिए थे। तब से अब तक यहां अनेकों जोड़े विवाह बंधन में बंधते हैं। लोगों का मानना है कि यहां शादी करने से दांपत्य जीवन सुख से व्यतीत होता है। इससे सौभाग्य की उम्र लंबी रहती है और जीवनसाथी के साथ बेहतर तालमेल बना रहता है।

मंदिर परिसर में मौजूद है कुंड

इस मंदिर में स्थित कुंड के बारे में मान्यता है कि विवाह संस्कार कराने से पूर्व भगवान विष्णु ने इसी कुंड में स्नान किया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता-पार्वती और भगवान शिव के विवाह में भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी और भाई द्वारा बहन की शादी में की जाने वाली सभी रस्में भगवान विष्णु ने ही पूरी की थीं।

त्रेतायुग की जलती धूनी

इस मंदिर में स्थित हवन कुंड में हर समय अग्नि जलती रहती है। इस अखंड ज्योति के बारे में कहा जाता है कि यह उसी समय से जल रही जब शिव-पार्वती के फेरे हुए थे। इस मंदिर में दर्शन करने आनेवाले भक्त इस कुंड की राख (भस्म) को अपने साथ प्रसाद रूप में घर ले जाते हैं और शुभ कार्यों के दौरान इसका टीका लगाते हैं। 

शिव पार्वती के विवाह में सम्मिलित हुये थे ऋषि-मुनि

त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। यहां शिव पार्वती के विवाह में समारोह में सभी संत-मुनियों ने भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है। विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्रकुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं। इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है।

ऐसे पहुंचे त्रिजुगीनारायण

त्रिजुगीनारायण मंदिर सोनप्रयाग से 12 किमी की दूरी पर स्थित है। जबकि रूद्रप्रयाग से लगभग 80 किमी की दूरी पर है।

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