रेस्क्यू सेंटर में गुलदारों,बाघों को रखने की नहीं बची जगह, वन विभाग की बढ़ी टेंशन

नमिता बिष्ट

उत्तराखंड में गुलदारों और बाघों के लिए बनाए गए रेस्क्यू सेंटर फुल हो जाने से वन विभाग की चिंता बढ़ गई है। इसके लिए विभाग ने सेंट्रल जू अथॉरिटी यानि सीजेडए को पत्र लिखकर जल्द नए रेस्क्यू सेंटर बनाने की अनुमति मांगी है।

उत्तराखंड में चार रेस्क्यू सेंटर
बता दें कि उत्तराखंड में चार रेस्क्यू सेंटर हैं। जो हरिद्वार के चिड़ियापुर, हल्द्वानी के रानीबाग, अल्मोड़ा और कार्बेट पार्क के ढेला रेंज हैं। इनमें कहीं से भी रेस्क्यू किए गए गुलदार और बाघों को रखा जाता है, लेकिन वर्तमान में सभी क्षमता से ज्यादा भर चुके हैं। ऐसे में अब और जानवरों को रखने की जगह नहीं बची है। इससे वन विभाग चिंतित है और सेंट्रल जू अथॉरिटी से जल्द नए रेस्क्यू सेंटर बनाने की अनुमति मांगी गई है।

क्षमता से अधिक जानवर रखे गए
हरिद्वार के चिड़ियापुर में 7 की क्षमता है, लेकिन वहां 11 गुलदार रखे गए हैं। इनमें से दो अंधे, दो के पैर खराब हैं और बाकी आदमखोर हैं। जबकि हल्द्वानी के रानीबाग में 2 की क्षमता है और वहां 3 गुलदार रखे गए हैं। इसी तरह अल्मोड़ा में 2 की क्षमता है, वहां 4 गुलदार रखे गए हैं।

कार्बेट पार्क के ढेला में बिना अनुमति रखे बाघ और गुलदार
वहीं कार्बेट पार्क के ढेला रेस्क्यू सेंटर में 3 बाघ और 4 गुलदार रखे गए हैं। यहां अभी सेंट्रल जू अथॉरिटी से फाइनल अनुमति के बिना ही रेस्क्यू सेंटर चल रहा है। हालांकि फाइनल अनुमति के बाद ही इसके लिए क्षमता निर्धारण हो सकेगा। वहीं चिड़ियापुर रेस्क्यू सेंटर की भी अभी औपचारिक अनुमति नहीं है। रेंजर ढेला संदीप गिरि का कहना है कि ढेला रेस्क्यू सेंटर की अनुमति का प्रोसेस चल रहा है। बस फाइनल अनुमति मिलनी है। सारी औपचारिकताएं पूरी कर सीजेडए को भेजी गईं हैं।

दो शावकों को दून जू में रखने की मांग
बता दें कि हरिद्वार के चिड़ियापुर रेस्क्यू सेंटर में दो गुलदार के शावक भी हैं, जो चार-पांच महीने के हैं। काफी समय से रहने के कारण इन्हें इंसानों के साथ रहने की आदत पड़ गई है। इस कारण वे अब जंगल में नहीं रह सकते। ऐसे में उन्हें देहरादून जू में रखने की मांग हरिद्वार वन प्रभाग की ओर से चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन से की गई है। रेस्क्यू सेंटर में उन्हें ज्यादा दिन रखने की जगह नहीं है।

दो और रेस्क्यू सेंटर बनाने की प्रक्रिया जारी
वहीं चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन डॉ. समीर सिन्हा का कहना है कि गुलदारों की संख्या ज्यादा हो गई है, जो रेस्क्यू कर लाए जाते हैं वे तो कुछ समय बाद जंगल में छोड़ दिए जाते हैं, लेकिन आदमखोर होने या शारीरिक रूप से अक्षम होने पर उन्हें जंगल में नहीं छोड़ा जा सकता। ऐसे में दो और रेस्क्यू सेंटर बनाने की प्रक्रिया चल रही है। उनके बनते ही सारी परेशानी दूर हो जाएगी।

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