रूद्रप्रयाग जिले में स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर हिन्दुओं का एक पवित्र स्थल है, जो भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है। यह मंदिर समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर गढ़वाल हिमालय की बर्फीली चोटियों में बसा है। माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 200 साल पुराना है। ऐसा कहा जाता है कि गढ़वाल की सैर पर निकले ऑफ बीट ट्रैवलर यहां मत्था टेकने जरूर आते हैं। हाल ही में यह मंदिर स्थल दूर-दराज के ट्रेकर्स और रोमांच के शौकीनों के बीच काफी ज्यादा लोकप्रिय हुआ है। यह मंदिर पहाड़ी ऊंचाई पर बसे होने की वजह से यहां के प्राकृतिक नजारे देखने लायक हैं। कार्तिकेय स्वामी मंदिर से प्रकृति का जो मंत्र मुग्ध कर देने वाला दृश्य होता है वह मनुष्य के मानस पटल पर छा जाता है। यहां से चौखम्बा और हिमालय की चमचमाती श्वेत चादर यहां के प्राकृतिक सौंदर्य पर चार चांद लगा देती है। यहां से जनपद रुद्रप्रयाग, चमोली, पौड़ी की असंख्य पर्वत श्रृंखलाओं को जब निहारता जाता है तो ऐसा लगता है मानो तीनों जनपदों का भ्रमण इसी तीर्थ किया जा रहा हो। कुमार कार्तिकेय काखूबसूरत मंदिर चारों तरफ बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों से घिरे होने के कारण इसे अलौकिक स्वरुप प्रदान करती हैं। इसी प्राकृतिक सौंदर्यता का लुफ्त उठाने यहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं आते रहते हैं।
मंदिर से जुड़ी है महत्वपूर्ण पौराणिक घटना
क्रौंच पर्वत पर स्थित प्राचीन कार्तिक स्वामी मंदिर से एक महत्वपूर्ण पौराणिक घटना भी जुड़ी है। माना जाता है कि कार्तिक ने इस जगह अपनी हड्डियां भगवान शिव को समर्पित की थी। किवदंती के अनुसार एक दिन भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय से कहा कि तुम में से जो ब्रम्हांड के सात चक्कर पहले लगाकर आएगा उसकी पूजा सभी देवी-देवताओं से पहले की जाएगी। कहे अनुसार कार्तिक ब्रम्हांड के सात चक्कर लगाने के लिए निकल गए, लेकिन दूसरी ओर गणेश ने भगवान शिव और माता पार्वती के चक्कर लगा लिए और कहा कि मेरे लिए तो आप दोनो ही संपूर्ण ब्रम्हांड हो। भगवान शिव बाल गणेश से काफी खुश हुए और उन्हे सौभाग्य प्रदान किया कि आज से तुम्हारी पूजा सबसे पहले की जाएगी। लेकिन जब कार्तिक ब्रम्हांड का चक्कर लगाकर आए और उन्हें जब सब बातों का पता चला तो उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया और अपनी हड्डियां भगवान शिव को समर्पित कर दीं।
भगवान कार्तिकेय आज भी कर रहे हैं यहां तपस्या
कार्तिक स्वामी मंदिर को लेकर मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय आज भी यहां निर्वांण रूप में तपस्यारत हैं। मंदिर में लगीं सैंकड़ो घंटियों की आवाज लगभग 800 मीटर तक सुनी जा सकती हैं। मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मुख्य सड़क से लगभग 80 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। मान्यता है कि इस मंदिर में घंटी बांधने से इच्छा पूर्ण होती है। यही कारण है कि मंदिर के दूर से ही आपको यहां लगी अलग-अलग आकार की घंटियां दिखाई देने लगती हैं।