अल्मोड़ा में प्रसिद्ध नंदादेवी मेले की तैयारियां शुरू, उत्तराखंड की लोक कला ऐंपण से सज रहा मंदिर

नमिता बिष्ट

उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा अपनी ऐतिहासिक धरोहर से जानी जाती है। यहां के प्राचीन मंदिर आज भी अपना इतिहास बयां करते हैं। जिसमें अल्मोड़ा का प्राचीन नंदा देवी का भव्य मंदिर भी एक है। यहां मां नंदा देवी को शैलपुत्री के नाम से भी जाना जाता है। मां नंदा चंद वंश की कुलदेवी हैं। यहां ऐतिहासिकता नंदादेवी मंदिर में हर साल भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मेला लगता है। इस बार के मेले के लिए नंदा देवी मंदिर परिसर को भव्य रूप से सजाया जा रहा है।  

इस बार भव्य होगा मेला

नंदा देवी का मेला सबसे पौराणिक मेला है। इस मेले को करीब 206 साल हो चुके हैं। कोरोना की वजह से पिछले दो सालों से इस मेले का आयोजन सांकेतिक रूप से किया गया था,  हालांकि इस साल बिना किसी भी प्रतिबंध के मेले का आनंद लिया जा सकेगा। जिसको लेकर मंदिर परिसर में इन दिनों जोरो शोरो से तैयारी चल रही है।

ऐंपण से सजाया जा रहा मंदिर

नंदा देवी का मेला 1 सितंबर से 7 सितंबर तक आयोजित होगा। इस बार श्रद्धालुओं को ऐंपण से सजा हुआ मंदिर देखने को मिलेगा। मंदिर की दीवारों को भी ऐंपण से सजाया जा रहा है। साथ ही कुमाऊंनी पिछोड़े का लुक भी देखने को मिलेगा। मंदिर के बाहर और अंदर रंगोली बनाई जा रही है। बता दें कि 1 सितंबर को महोत्सव का उद्घाटन के बाद विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते हुए 7 सितंबर को नगर में डोला भ्रमण कर कार्यक्रम का समापन होगा।

नंदा देवी मंदिर की स्थापना का इतिहास

नंदा देवी मंदिर के पीछे कई ऐतिहासिक कथा जुडी है। कुमाऊं में मां नंदा की पूजा चंद शासकों के जमाने से की जाती है। इतिहासकारों के अनुसार 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से मां नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा लाए और उसे यहां मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्ट्रेट परिसर अल्मोड़ा) में स्थापित किया। तब से उन्होंने मां नंदा का कुलदेवी के रूप में पूजन शुरू किया। बाद में कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने नंदा की प्रतिमा को मल्ला महल से हटाकर दीप चंदेश्वर मंदिर यानी वर्तमान नंदादेवी मंदिर में स्थापित करवाया।

कुमाऊँ के साथ समूचे गढ़वाल की लोकप्रिय देवी

कुमाऊँ मंड़ल में अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, सोराग, कर्मी, पौथी, चिल्ठा, सरमूल आदि में नंदा देवी के मंदिर हैं। यहां कई जगहों पर नंदा के सम्मान में मेलों के रुप में समारोह आयोजित होते हैं। कुमाऊँ के अलावा भी नंदादेवी समूचे गढ़वाल और हिमालय के अन्य भागों में जन सामान्य की लोकप्रिय देवी हैं। नंदा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में मिलते हैं। इतना ही नहीं नंदा देवी जैसे बड़े महोत्सव में यहां पहाड़ के पर्यावरण, यहां की परंपरा और यहां की लोक कला को संरक्षित करने का भी प्रयास किया जाता है। 

विदेशी सैलानियों की आस्था का भी केंद्र

देवभूमि उत्तराखंड में मां नंदा को बहन, मां, बेटी के रूप में पूजा जाता है। सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर देश ही नहीं विदेशी सैलानियों की आस्था का भी केंद्र है। यहां मां नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है। उत्तराखंड में नंदा देवी पर्वत शिखर, रूपकुंड और हेमकुंड नंदा देवी के प्रमुख पवित्र स्थलों में एक हैं। माना जाता है कि नंदा ने ससुराल जाते समय रूप कुंड में पानी पिया था। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में शिव की पत्नी पार्वती को ही मां नंदा माना गया है।

ऐसे पहुंचें नंदा देवी मंदिर

बाय एयर:–  अल्मोड़ा का नजदीकी हवाई अड्डा, एक प्रसिद्ध कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर में स्थित है, जो अल्मोड़ा से लगभग 127 किलोमीटर दूर है।

ट्रेन:– निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित है। काठगोदाम रेलवे से सीधी ट्रेन दिल्ली भारत की राजधानी, लखनऊ उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी, देहरादून उत्तराखंड राज्य की राजधानी के लिए है।

सड़क मार्ग:– नंदा देवी मन्दिर, अल्मोड़ा सड़क नेटवर्क के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। उत्तराखंड में हवाई और रेल संपर्क सीमित है। सड़क नेटवर्क सबसे अच्छा और आसानी से उपलब्ध परिवहन विकल्प है। आप या तो अल्मोड़ा के लिए ड्राइव कर सकते हैं या टैक्सी से दिल्ली या किसी भी दूसरे शहर से अल्मोड़ा तक पहुंच सकते हैं।

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