Happy Birthday: 25 साल का हुआ रुद्रप्रयाग जिला

नमिता बिष्ट

आज यानी 16 सितंबर 1997 में उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिला अविभाजित उत्त्र प्रदेश के समय चमोली, टिहरी और पौड़ी जिले के भागों को सम्मलित कर अस्तित्व में आया था। रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय अलकनन्दा और मंदाकिनी दो नदियों के संगम पर स्थित और पंच प्रयागों में से एक है। इसे प्राकृतिक सौन्दर्य उपहार स्वरूप मिला हुआ है, जो जलवायु क्षेत्र की ऊंचाई पर निर्भर करता है। जबकि केदारनाथ मंदिर ने रुद्रप्रयाग को दुनियाभर में एक खास पहचान दिलाई है। यह एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो पांडवों द्वारा निर्मित किया गया और आदि शंकराचार्य द्वारा पुनर्जीवित किया गया है।

केदारधाम सहित 200 से अधिक शिव मंदिर
रुद्रप्रयाग जिला अक्षांश 30°उत्तर और देशांतर में 78°पूर्व में स्थित है। रुद्रप्रयाग में केदारनाथ मंदिर उत्तर में स्थित है, जबकि पूर्व में मदमहेश्वर, दक्षिणी पूर्व में नगरासू और ठीक दक्षिण में श्रीनगर है। केदारनाथ से उत्पन्न पवित्र मंदाकिनी नदी जिले की मुख्य नदी है। वहीं रुद्रप्रयाग जिले का क्षेत्रफल 1984 वर्ग मीटर है, जिले में चार तहसीलें और तीन विकासखंड हैं। जबकि जिले की जनसंख्या 2 लाख 42 हजार है। बता दें कि उत्तराखंड के चार धामों में एक धाम केदारनाथ धाम सहित यहां 200 से अधिक शिव मंदिर हैं।

कैसे बना रुद्रप्रयाग जिला
रुद्रप्रयाग जिले के गठन के लिए चमोली जिले के अगस्तमुनी और उखीमठ ब्लॉक को पूर्ण रूप से और पोखरी और कर्णप्रयाग ब्लॉक का कुछ हिस्सा लिया गया था। वहीं टिहरी जिले का जखोली और कीर्तीनगर ब्लॉक का हिस्सा और पौड़ी जिले का खिरसू ब्लॉक का हिस्सा इसमें सम्मलित किया गया था।

ऐसे पढ़ा रुद्रप्रयाग का नाम
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार नारद को ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक माना गया है। अर्थात नारद मुनि का जन्म सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की जांघ से हुआ है। पौराणिक युग में नारद जी पत्रकारिता का कार्य करते थे। केदारखण्ड में वर्णित कथा के अनुसार नारद मुनि ने रुद्रप्रयाग में एक टांग पर खड़े होकर कड़ी तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नारदजी को “रुद्र” रूप में दर्शन दिए और उनकी तपस्या से खुश होकर उन्हें वीणा दी। जिस स्थान पर भगवान शिव ने रूद्र रूप में दर्शन दिए थे। इस स्थान पर एक रुद्रनाथ मंदिर बनाया गया। बाद में इसी स्थान को “रुद्रप्रयाग” के नाम से जाना जाता है। पुराणों में रुद्रप्रयाग को ‘पुनाड़’ कहा गया है। जबकि महाभारत काल में रुद्रप्रयाग को “रूद्रावर्त” कहा जाता था।

टिहरी, पौड़ी और चमोली जिलों को काटकर बना अलग जिला
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार परमार शासकों से पहले नागवंश के शासक इस क्षेत्र में राज्य करते थे । बाद में छठी शताब्दी के बाद परमार शासकों ने अपना शासन स्थापित किया। 1804 में यह क्षेत्र गोरखा और 1815 में अंग्रेजों के अधीन रहा। अंग्रेजों के सहयोग से सुदर्शन शाह ने गढ़वाल को गोरखा सैनिकों से आजाद करवाया बदले में अंग्रेजों को गढ़वाल का कुछ क्षेत्र देना पड़ा। 4 मार्च 1820 में सुदर्शन शाह और ब्रिटिश सरकार के मध्य एक संधि हुई। जिसके अनुसार ब्रिटिश सरकार टिहरी गढ़वाल पर राजा सुदर्शन और उनके वंशजों का अधिकार स्वीकार किया। रूद्रप्रयाग का अधिकांश क्षेत्र टिहरी गढ़वाल के अधीन था। आजादी के बाद टिहरी, पौड़ी और चमोली जिलों को काटकर रुद्रप्रयाग जनपद का 16 सितंबर 1997 में गठन किया गया‌।

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