बद्रीनाथ धाम हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थान है। यह मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे नीलकंठ पर्वत पर स्थित है। मंदिर सिर्फ 6 महीनों के लिए खुलता है। शीत ऋतु के दौरान मंदिर के कपाट बंद ही रहते हैं। मान्यताओं के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य ने इस धाम की स्थापना की थी। पौराणिका कथा के अनुसार इस स्थान पर भगवान विष्णु ने तप किया था। तप के दौरान मां लक्ष्मी ने बेर का पेड़ बनकर श्रीहरि को छाया दी थी।
तीन चाबियों से खुलते हैं बद्रीनाथ के कपाट
बद्रीनाथ धाम के कपाट पूरे विधि-विधान से खोले जाते हैं। मंदिर की 3 चाबियां अलग-अलग लोगों के पास होती है। इन तीनों चाबी को लगाने पर ही पट खुलते हैं। एक चाबी उत्तराखंड के टिहरी राज परिवार के राज पुरोहित के पास होती है, जो नौटियाल परिवार से संबंध रखते हैं। दूसरी बद्रीनाथ धाम के हक हकूकधारी मेहता लोगों के पास होती है और तीसरी हक हकूकधारी भंडारी लोगों के पास। मंदिर के दरवाजे खुलते ही सबसे पहले रावल (पुजारी) प्रवेश करते हैं।
घी में लिपटी होती है भगवान की प्रतिमा
पुजारी जब मंदिर में प्रवेश करते हैं तो वे सबसे पहले गर्भगृह में जाते हैं और मूर्ति पर से कपड़ा हटाया जाता है। ये कपड़ा माणा गांव की कुंवारी लड़कियों द्वारा तैयार किया जाता है। मंदिर के कपाट बंद करने से पहले मूर्ति पर घी का लेप लगाया जाता है और इसके ऊपर ये कपड़ा लपेटा जाता है। कपड़ा हटाने के बाद सबसे पहले ये देखा जाता है कि मूर्ति घी से पूरी तरह लिपटी है या नहीं। अगर लिपटी है तो ऐसा माना जाता है कि इस साल देश में खुशहाली रहेगी। घी कम है तो सूखा या बाढ़ की स्थिति बन सकती है।
ध्यान की मुद्रा में स्थापित है भगवान की प्रतिमा धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान नर-नारायण ने बद्री वन में ही तपस्या की थी। मंदिर में भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची प्रतिमा है। ये ध्यान मुद्रा में है। यहां कुबेर देव, लक्ष्मी-नारायण की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। मंदिर में विष्णु जी के पांच स्वरूपों की पूजा की जाती है, इन्हें पंचबद्री कहते हैं। बद्रीनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा अन्य चार स्वरूप भी मंदिर में ही हैं- श्री योगध्यान बद्री, श्री भविष्य बद्री, श्री वृद्घ बद्री, श्री आदि बद्री।