मदमहेश्वर घाटी के रासी गांव के बीच में विराजमान भगवती राकेश्वरी के मन्दिर में इन दिनों पौराणिक जागरो के गायन से क्षेत्र का वातावरण भक्तिमय बना हुआ है.राकेश्वरी मन्दिर में पौराणिक जागरो की परम्परा युगों से चली आ रही है. पौराणिक जागरो के गायन की परम्परा को जीवित रखने में गांव के वृद्ध लोग अपने महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है. दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरो के माध्यम से देवभूमि उत्तराखंड के प्रवेश द्वार हरिद्वार से लेकर चौखम्बा हिमालय तक विराजमान 33 कोटि देवी देवताओं का आवाहन करने के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं व महाभारत युद्ध की महिमा का गुणगान किया जाता है. श्रावण मास की संक्रांति से शुरू होने वाले पौराणिक जागरो का गायन दो माह दो दिन तक चलता है! आश्विन की दो गते को भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित करने के बाद पौराणिक जागरो के गायन का समापन होता है! पौराणिक जागरो के गायन के समापन में क्षेत्रवासी बढ़ – चढ़कर भागीदारी करते है.