23 मार्च को कैबिनेट के साथ शपथ लेंगे पुष्कर सिंह धामी

उत्तराखंड का ताज एक बार फिर पुष्कर सिंह धामी के सर सज चुका है। पुष्कर सिंह धामी सूबे के 12 वें सीएम बन गए हैं। देहरादून में हुई बीजेपी की विधायक दल की बैठक में यह फैसला लिया गया है। लगभग 11 दिनों के मंथन के बाद आखिरकार फैसला आ गया है। एक बार फिर मुख्यमंत्री  के लिए पुष्कर सिंह धामी के नाम पर पार्टी आलाकमान ने मोहर लगाई है। यानि धामी 23 मार्च को फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं।

आपको बता दें की उत्तराखंड के 2022 विधानसभा चुनावों में पुष्कर सिंह धामी के नाम पर चुनाव लड़ा गया। लेकिन वह खटीमा से ही चुनाव हार गए। ऐसे में क्यास यह लगाए गए कि मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी की जगह किसी और को मौका दिया जा सकता है। हालांकि पुष्कर सिंह धामी के पक्ष में कई विधायकों ने आलाकमान से आग्रह भी किया था।

गैरतलब हो कि चुनाव से छह महीने पहले ही उत्तराखंड के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। भगत सिंह कोश्यारी के करीबी माने जाने वाले धामी ने भाजपा की युवा इकाई से राजनीति की शुरुआत की थी और 2002 से 2008 तक भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें खटीमा सीट से उम्मीदवार बनाया जिसमें उन्होंने जीत हासिल की। 2017 में एक बार फिर वे खटीमा सीट से विधायक बने और प्रदेश के मुखिया के रूप में बागडोर उन्हें सौपी गई थी। अब चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बाद फिर उन्हें मौका दिया गया है। अब 23 मार्च को शपथ  लेने के बाद  पुष्कर सिंह धामी को छह महीने के भीतर चुनाव करवाकर विधायक बनाना होगा। इसके लिए किसी विधायक की सीट खाली की जाएगी।

सैनिक परिवार में हुआ जन्म

पिथौरागढ़ जिले की डीडीहाट तहसील के एक गांव में टुण्डी में धामी का जन्म एक सैनिक परिवार में हुआ था। उन्होंने सरकारी स्कूल में ही अपनी शिक्षा पूरी की। पढ़ाई के दौरान ही धामी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सम्पर्क में आए और 1990 से लेकर 1999 तक परिषद के कार्यकर्ता के रूप में काम किया।

युवकों के बीच मजबूत पकड़

युवा मोर्चा का नेतृत्व संभालने के बाद उन्होंने प्रदेश भर में घूम-घूमकर यात्राएं की और बेरोजगार युवाओं को एक साथ जोड़कर बड़ी रैलियां कर युवा नेता के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई थी।

70 प्रतिशत आरक्षण में अहम भूमिका

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में काम करने के बाद वह भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़े और 2002 से 2008 तक प्रदेश में युवाओं को रोजगार के मुद्दे पर एकजुट किया। इस दौरान उनकी बड़ी सफलता तत्कालीन सरकार से राज्य के उद्योगों में युवाओं के लिए 70 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा करवाना रही।

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