ऊखीमठ। विश्व का सबसे ऊंचा शिव मंदिर, पंच केदारो में तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के दर पर इन दिनों भक्तों का तांता लगा हुआ है। तुंगनाथ मन्दिर में अभी तक लगभग 14 हजार तीर्थ यात्रियों ने पूजा- अर्चना जलाभिषेक कर पुण्य अर्जित किया है। तुंगनाथ धाम सहित तुंगनाथ घाटी के यात्रा पड़ावों पर इस वर्ष भारी संख्या में तीर्थ-यात्रियों व सैलानियों की आवाजाही होने से यात्रा पड़ावों पर रौनक बनी हुई है।
हिमालय की ख़ूबसूरत प्राकृतिक सुन्दरता के बीच बना यह मन्दिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। बता दें कि चन्द्र शिला की तलहटी में बसे भगवान तुंगनाथ के कपाट 6 मई को ग्रीष्मकाल के लिए खोले गये थे तथा मात्र 55 दिनों की अवधि में लगभग 14 हजार श्रद्धालुओं ने ने भगवान तुंगनाथ के दर्शन किए हैं। यदि12 मई को कुण्ड-चोपता-गोपेश्वर राष्ट्रीय राजमार्ग पर संसारी-जैबरी के मध्य चट्टान खिसकने से बाधित नहीं होता तो तुंगनाथ धाम आने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या में और अधिक वृद्धि होती। मन्दिर समिति के अनुसार भगवान तुंगनाथ के कपाट खुलते ही प्रतिदिन 250 से लेकर 300 तीर्थ यात्री तुंगनाथ धाम पहुंच रहे हैं, लकिन बरसात शुरू होने के चलते इन दिनों तीर्थ यात्रियों के संख्या में कुछ कमी आई है। अब रोजाना 80 से लेकर 120 तीर्थ यात्री तुंगनाथ धाम पहुंच रहे हैं।
हिमालय की गोद में बसा विश्व का सबसे ऊंता शिवालय
तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित है। यह मन्दिर भगवान् शिव को समर्पित है और मिनी स्वीटजरलैंड कहे जाने वाले चोपता से 3.5 किमी की दूरी पर तुंगनाथ पर्वत पर अवस्थित है। हिमालय की ख़ूबसूरत प्राकृतिक सुन्दरता के बीच बना यह मन्दिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मुख्य रूप से चारधाम की यात्रा के लिए आने वाले यात्रियों के लिए यह मन्दिर बहुत महत्त्वपूर्ण है। तुंगनाथ मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा शिव मंदिर है, इस मंदिर को 5000 वर्ष पुराना माना जाता है।
पांडवों ने किया तुंगनाथ महादेव मंदिर निर्माण
तुंगनाथ महादेव मंदिर का निर्माण पांडवों ने कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने हाथों से हुए अपने ही कुल के लोगों के नरसंहार के पाप से बचने के लिए करवाया था। इस युद्ध में पांडवों के द्वारा हुए नरसंहार से भगवान शिव उनसे बहुत नाराज थे, जिन्हें खुश करने और अपने ऊपर के पाप से बचने के लिए पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
तुंगनाथ मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय
अगर आपको तुंगनाथ मंदिर के दर्शन करने के साथ-साथ थोड़ा-बहुत एडवेंचर पसंद है, तो आप नवंबर में दीपावली से पहले इस यात्रा को पूरा कर सकते हैं, क्योंकि नवंबर महीने में मंदिर के दर्शन करने के साथ-साथ आप बर्फ के मजे भी ले सकते हैं।
तुंगनाथ मंदिर कैसे जाएं
तुंगनाथ मंदिर जाने के लिए सबसे पहले आपको चोपता जाना पड़ेगा, जो तुंगनाथ मंदिर से करीब 3.5 किमी. की दूरी पर स्थित है और चोपता से ही तुंगनाथ मंदिर की चढ़ाई शुरू होती है। चोपता से तुंगनाथ मंदिर आप पैदल ट्रेक करके 2-3 घंटे में पहुंच सकते हैं या आप चाहें तो तुंगनाथ मंदिर की चढ़ाई करने के लिए घोड़े या खच्चर की सुविधा भी ले सकते हैं।
भगवान मद्महेश्वर और तुंगनाथ के कपाट खुलने की तिथि घोषित, इस दिन से श्रद्धालुओं कर सकेंगे दर्शन