उत्तर प्रदेश के जरिए मांझी, सहनी साधना चाह रहे बिहार की सियासत!

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डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल दो छोटे दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) के प्रमुखों पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और बिहार के मंत्री मुकेश सहनी की हाल में हुई मुलाकात के बाद बिहार की सियासत गर्म हो गई है तथा तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं। दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद अधिकारिक तौर पर कहा गया है यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चा की गई है। कहा जाता है कि हम और वीआईपी का यूपी में कोई जनाधार नहीं है। लेकिन, कहा जा रहा है कि यूपी में निषाद समाज का बड़ा वोट बैंक है जिस पर सहनी की नजर है और इसी समाज के वोट बैंक को प्रभावित करने का भय दिखाकर भाजपा पर दबाव बना रहे हैं। इससे यूपी में कुछ सीटें हासिल की जा सकें।

इधर, दोनों नेताओं की मुलाकात को भी बिहार में इसी नजर से देखा जा रहा है। भाजपा के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहते हैं कि सहनी बिहार में तो विधानसभा चुनाव में खुद अपने चुनाव नहीं जीत सके, वे यूपी में क्या कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि इन दोनों नेताओं की यूपी में पहचान तक नहीं है। वैसे, कोई कहीं से भी चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है। कहा जा रहा है कि हम और वीआइपी यूपी के बहाने बिहार की राजनीति को साध रहे हैं। कहा जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में 24 बिहार विधान परिषद सीटों पर चुनाव होने हैं। अब यह दोनों पार्टियां यह चाहती है कि इनको इन 24 विधान परिषद की सीटों में ठीक-ठाक हिस्सेदारी मिले। ऐसे में दोनों छोटी पार्टियां अब प्रेशर पालिटिक्स में लगी हैं।

बिहार में हम के पास 4 विधायक हैं और 3 विधायक वीआईपी के हैं। वीआईपी के एक विधायक का निधन हो चुका है। इधर, कहा तो यहां तक जा रहा है कि मांझी ने ब्राह्मणों के खिलाफ जो आपत्तिजनक टिप्पणी की थी वह भी एक रणनीति का हिस्सा है। कहा जा रहा है कि इस बयान के जरिए भी मांझी नीतीश कुमार और भाजपा पर दबाव बनाना चाहते हैं। वे भी जानते हैं कि ब्राह्मणों का वोट भाजपा और जदयू को मिलता रहा है। ऐसे में ये दोनों पार्टियां ब्राह्मणों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहेंगे। बहरहाल, राजग में शामिल दोनों छोटे दल इन दिनों प्रेशर पॉलिटिक्स के जरिए ठंड के मौसम में सियासत को गर्म कर रहे हैं, अब देखना होगा, कि इसका कितना असर राजग के बड़े घटक दलों पर पड़ता है।

(आईएएनएस)

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