नमिता बिष्ट
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आज 138वीं जयंती है। वह भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के मुख्य नेताओं में से एक थे। सम्पूर्ण भारत में डॉ राजेंद्र प्रसाद काफी लोकप्रिय थे, जिसके बाद से उन्हें राजेंद्र बाबू और देश रत्न कहकर बुलाया जाता था। उनकी जयंती पर आज पूरा देश उनको नमन कर रहा है।
3 दिसंबर 1884 को बिहार के जीरादेई गांव में जन्म
राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिला के जीरादेई गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार के छपरा जिला स्कूल से हुई थीं। केवल 18 साल की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की और फिर कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर लॉ के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। वे हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली और फारसी भाषा से पूरी तरह परिचित थे।
द एक्जामिनी इज बेटर देन एक्जामिनर
कहते हैं ना होनहार बिरवान के होत चिकने पात… राजेंद्र प्रसाद इसके सबसे बेहतरीन उदाहरण थे। वह बचपन से ही होनहार रहे। पढ़ाई लिखाई में उम्दा होने की वजह से एक बार तो उनकी परीक्षा आंसर शीट को देखकर, एक बार तो एग्जामिनर ने तो यहां तक कह दिया था कि कि द एक्जामिनी इज बेटर देन एक्जामिनर।
अंतरिम सरकार में बने थे खाद्य मंत्री
कानून की पढ़ाई करने के बाद राजेंद्र प्रसाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और बिहार प्रदेश के एक बड़े नेता के रूप में उभरे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रभावित राजेंद्र बाबू 1931 के ‘नमक सत्याग्रह’ और 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भी शामिल हुए थे। इस दौरान उनको जेल की यात्रा और अंग्रेजों की यातनाएं भी सहनी पड़ी थी। राजेंद्र बाबू आजादी से पहले 2 दिसंबर 1946 को वे अंतरिम सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री बने।
दो बार राष्ट्पति बनने का रिकॉर्ड
राजेंद्र बाबू विद्वता, सादगी और ईमानदारी के मिशाल थे। उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती थी, जो हर किसी को मोहित कर लेती थी। साल 1950 में उन्हें स्वतंत्र भारत का पहला राष्ट्रपति चुना गया। बता दें कि राजेंद्र प्रसाद देश के एकलौते राष्ट्रपति हैं जो लगातार दो बार राष्ट्पति चुने गए। वह 12 सालों तक राष्ट्रपति रहे।
28 फरवरी 1963 में निधन
बत दें कि 1962 में जब उन्होंने राष्ट्रपति के पद से अवकाश लिया तो भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया था। अपने जीवन के आखिरी वक्त में वह पटना के निकट सदाकत आश्रम में रहने लगे थे। यहां पर 28 फरवरी 1963 में उनका निधन हो गया।
राजेन्द्र बाबू ने कई पुस्तकें लिखी
राजेन्द्र बाबू ने अपनी आत्मकथा के अलावा कई पुस्तकें भी लिखीं। जिनमें ”बापू के कदमों में बाबू”, ”इंडिया डिवाइडेड”, ”सत्याग्रह ऐट चम्पारण”, ”गांधीजी की देन” और ”भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र” शामिल हैं।
राजेन्द्र बाबू के ये हैं अनमोल वचन
• “मंजिल को पाने की दिशा में आगे बढ़ते हुए याद रहे कि मंजिल की ओर बढ़ता रास्ता भी उतना ही नेक हो”।
• “खुद पर उम्र को कभी हावी नहीं होने देना चाहिए”।
• “हर किसी को अपनी उम्र के साथ सीखने के लिए खेलना चाहिए”।
• “किसी की गलत मंशाएं आपको किनारे नहीं लगा सकतीं।
• “जो बात सिद्धांत में गलत है, वह बात व्यवहार में भी सही नहीं है”।