सिखों के 9वें गुरु तेग बहादुर ने बलिदान दे दिया लेकिन औरंगजेब के आगे नहीं झुकाया सिर

नमिता बिष्ट

गुरु तेग बहादुर का आज शहीदी दिवस है। वह सिखों के नौवें गुरु थे, उन्होंने धर्म और आदर्शों की रक्षा करते हुए अपनी जान न्यौछावर कर दी थी। 1675 में इस्लाम स्वीकार न करने के कारण मुगल शासक औरंगजेब ने सबके सामने उनका सिर कटवा दिया, लेकिन औरंगजेब उनका सिर झुका नहीं पाए। उनके अलावा तीन अनुयायियों भाई सति दास, भाई मति दास और भाई दयाला जी को भी औरंगजेब के सैनिकों ने तड़पाकर मारा। लेकिन किसी ने भी उफ्फ तक नहीं की और हंसते हुए मौत को स्वीकर कर लिया।

कश्मीरी पंडितों पर औरंगजेब का अत्याचार
आज जहां धर्म के नाम पर कट्टरता देखने को मिलती है, वहीं 16वीं सदी में गुरु तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। दरअसल यह कहानी कश्मीर से जुड़ी हुई है। कश्मीर को पंडितों का गढ़ माना जाता था, इसकी वजह ये थी कि वहां बेहद विद्वान पंडित रहते थे। तब औरंगजेब की तरफ से शेर अफगान खां कश्मीर का सूबेदार हुआ करता था। उस दौर में औरंगजेब ने कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार करना शुरू किया और उन्हें जबरन इस्लाम कबूल करने का दबाव बनाया।

गुरु तेग बहादुर ने किया लोगों को जागरूक
बता दें कि धर्म हमें शांति और अंहिसा का मार्ग दिखाता है। गुरु नानक देव की के नक्शे-कदम पर चलते हुए गुरु तेग बहादुर भी अपने काल में शांति का पैगाम फैला रहे थे। उधर औरंगजेब किसी भी धर्म को अपने से ऊपर नहीं देखना चाहता था। वह अत्याचार कर हिंदुओं और सिखों का जबरन धर्मांतरण करा रहा था। मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, हिंदू और सिख महिलाओं के साथ दुष्कर्म और अत्याचार हो रहे थे। ऐसे में गुरु तेग बहादुर ने गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया और उन्हें मुगलों के खिलाफ लड़ने को तैयार किया। जब कुर्बानी देने की बारी आई, तो सबसे आगे खड़े हो गए।

पंडित कृपा दास ने गुरु तेग बहादुर से मांगी सहायता
जब औरंगजेब की ओर से लालच या दमन के जोर पर धर्मांतरण कराया जा रहा था। तब पंडित कृपा दास ने गुरु तेग बहादुर से सहायता मांगी थी। कृपा दास ने गुरु तेग बहादुर को बताया कि औरंगजेब के सामंत ने उन्हें धमकी दी है कि या तो वे इस्लाम कबूल कर लें या फिर मौत के लिए तैयार रहें। इस पर गुरु ने कृपा दास और उनके साथियों से कहा कि वे औरंगजेब के लोगों से कहें कि वह गुरु तेग बहादुर का धर्मांतरण करा लें। यदि वह धर्मांतरण कर लेते हैं तो फिर हम भी इस्लाम अपना लेंगे। यह औरंगजेब को सीधी चुनौती थी। इस चुनौती के बाद गुरु तेग बहादुर खुद ही दिल्ली गए और अपनी पहचान बताई, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

सिर कटावा दिया पर औरंगजेब के आगे नहीं झुके
औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को या तो इस्लाम अपनाने को कहा गया था या फिर मौत चुनने को। लेकिन उन्होंने अपना धर्म छोड़ने से इनकार कर दिया और बलिदान की राह चुनी। तमाम धमकियों के बाद भी जब गुरु तेग बहादुर टस से मस नहीं हुए तो औरंगजेब ने उन्हें मौत की सजा सुना दी। इसके बाद उन्हें चांदनी चौक ले जाया गया और तलवार से उनकी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया गया। औरंगजेब ने फरमान दिया कि गुरु तेग बहादुर का कोई भी अंतिम संस्कार नहीं करेगा।

तीन अनुयायियों को भी औरंगजेब ने दी थी क्रूर मौत
औरंगजेब की क्रूरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गुरु तेग बहादुर जी के सामने भाई मतिदास जी को आरे से चीरा गया। मतिदास के बाद भाई दयाला को उबलते तेल में फेंक दिया गया। फिर भाई सती दास को जिंदा जला दिया गया।

ऐसे पड़ा त्यागमल से गुरु तेग बहादुर नाम
बता दें कि गुरु तेग बहादुर का बचपन का नाम त्यागमल था। सिर्फ 14 साल की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों से युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया। इस वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग़ बहादुर रख दिया। युद्धस्थल में भीषण रक्तपात से गुरु तेग़ बहादुर जी के वैरागी मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उनका का मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर हुआ। उन्होंने अमृतसर में अपना बचपन भाई गुरदास के मातहत गुजारा था। उन्हें हिंदी और संस्कृत का अच्छा ज्ञान था। इसके अलावा बाबा बुढ़ा जी से तलवारबाजी, घसवारी जसे युद्ध कौशल सीखे थे।

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