National Mathematics Day: जानिए कौन हैं गणित के जादूगर, जिनके कई थ्योरम और फॉर्मूला आज भी गणितज्ञों के लिए है अबूझ पहेली

नमिता बिष्ट

भारत में बहुत से प्रतिभाशाली व्यक्तित्व हुए हैं जिनकी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया ने माना है। इन्हीं में से एक है श्रीनिवास अयंगर रामानुजन। जो सिर्फ भारत के ही नहीं बल्कि दुनिया के महान गणितज्ञ माने जाते हैं। इसलिए उनके जन्मदिन पर हर साल 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है। तो चलिए जानते है इस खास दिवस पर उनके जीवन से जुड़े रोचक सफर के बारे में………….

गणितज्ञों के लिए आज भी अबूझ पहेली
श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का गणित के क्षेत्र के संख्या का विश्लेषणात्मक सिद्धांत, दीर्घवृत्तीय फलन, सतत फलन, और अनंत श्रेणियों में विशेष योगदान है। उनके कई प्रमेय और सूत्र गणितज्ञों के लिए आज भी अबूझ पहेली बने हुए हैं। जिनको सुलझाया ही नहीं जा सका है।

रामानुजन का सिर्फ गणित पर ही ध्यान
श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को चेन्नई के दक्षिण पश्चिम में स्थित इरोड नाम के छोटे से गांव के तमिल ब्राह्माण अयंगर परिवार में हुआ था। रामानुजन का मन सिर्फ गणित और संख्याओं में ही लगता था और बाकी विषयों पर ध्यान ना देने के कारण वे परीक्षा में नाकाम ही रहा करते थे। लेकिन वे गणित में बहुत ही असामान्य रूप से प्रतिभाशाली थे और अपने से वरिष्ठ कक्षा के दोस्तों की समस्याएं सुलझा लेते थे।

आत्महत्या का भी किया था प्रयास
बता दें कि एक बार तो अन्य विषयों में नाकाम होने से रामानुजन ने तंग आकर आत्महत्या का प्रयास भी किया था। फिर किसी तरह से उन्होंने 12वीं पास की । जिसके बाद वे मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की हैसियत से काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने गणित पर काम करना नहीं छोड़ा और इसके साथ ही वे ब्रिटिश गणितज्ञ जीएच हार्डी को पत्र लिख कर अपने किए गए गणितीय कार्यों की जानकारी देते थे।

हार्डी नहीं कर पाए जीनियस रामानुजन को नजरअंदाज
शुरू में हार्डी ने उन्हें नजरअंदाज किया, लेकिन वे ज्यादा देर तक ऐसा नहीं कर सके। जल्दी ही वे समझ गए कि उन्हें किसी जीनियस के खत मिल रहे हैं। इसके बाद रामानुजन के द्वारा हल की गई समस्याओं का अध्ययन करने के बाद उन्होंने रामानुजन को इंग्लैंड बुलावाया और उन्हें कैम्ब्रिज में स्कॉलरशिप भी दिलवाई।

एक अनोखी संख्या का एक रोचक किस्सा
दरअसल हार्डी ने उनके और रामानुजन के बीच एक रोचक किस्से का जिक्र किया है। एक बार जब हार्डी बीमार रामानुजन को अस्पताल में देखने के लिए गए, तब उन्होंने रामानुजन को बताया कि उन्हें टैक्सी का नंबर बहुत ही साधारण सा लगा। इस पर रामानुजन ने हार्डी से वह संख्या पूछी तब हार्डी ने वह संख्या 1729 बताई।

1729 है बहुत ही रोचक संख्या
रामानुजन ने तब बताया कि 1729 वास्तव में एक बहुत ही रोचक संख्या है। यह वह सबसे छोटी संख्या है जिसे दो घनों के योग में दो तरह से व्यक्त किया जा सकता है। यह 1 और 12 के घनों का भी योग है और 9 और 10 के घनों का भी योग है। इसके बाद से इस तरह की संख्याओं को रामानुजन संख्या के रूप में जाना जाता है। इसी प्रकार 4104, 30312, 20683, और 40033 भी ऐसी ही संख्याओं के उदाहरण है जिन्हें किन्ही दो घनों के योग के दो युग्मों में प्रदर्शित किया गया जा सकता है।

रॉयल सोसाइटी की सदस्यता पाने वाले पहले भारतीय
इंग्लैड में ही रामानुजन का कार्य दुनिया के सामने आया, जिसमें हार्डी का बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने रामानुजन का बहुत सहयोग किया। यहां उन्होंने रामानुजन के 20 ज्यादा शोधपत्र प्रकाशित करवाए। इंग्लैंड में ही उन्हें स्नातक की डिग्री मिली और उसके बाद रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन की दुर्लभ सदस्यता भी,जिसे सबसे कम उम्र में सदस्यता पाने वाले रामानुजन पहले भारतीय थे। इसके बाद उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज की फैलोशिप भी मिली।

अल्पायु में ही दुनिया को कह दिया अलविदा
बता दें कि इंग्लैंड का मौसम रामानुजन को रास नहीं आया। यहां की ठंड की वजह से उनकी सेहत लागातार गिरती रही। जिसके कारण उन्हें इंग्लैंड छोड़ने का फैसला करना पड़ा क्योंकि सेहत के प्रति लापरवाही और ठंड के कारण उन्हें टीबी हो गई थी। इसीलिए 1919 को वे भारत लौटे और फिर 26 अप्रैल 1920 को उन्होंने 32 साल की अल्पायु में ही दुनिया को अलविदा कह दिया।

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