Jammu-Kashmir: मोबाइल फोन और अलार्म घड़ियों के जमाने में भी श्रीनगर के लोगों को रमजान के महीने में ‘सहरखान’ का इंतजार रहता है, कश्मीर घाटी में ढोल बजाकर सहरी के लिए मुसलमानों को तड़के जगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। रमजान के दौरान ‘सहरखान’ का दिन जल्दी शुरू होता है। वे दो बजे उठते हैं और फिर तीन बजे से तड़के सुबह साढ़े चार बजे तक ढोल बजाते हुए शहर की गलियों में घूमते हैं और सहरी के लिए लोगों को जगाते हैं।
वक्त-ए-सहर वो रिवाज है जिसके जरिए सहरखान एक-दूसरे को बुलाते हैं। इसे पाक और कश्मीर घाटी की सांस्कृतिक विरासत को संजोने के मौके के तौर पर देखा जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि “यह तो हमारी परंपरा है इनके बगैर हमारा कोई मकसद नहीं है। ये मोबाइल ये आर्टिफिशियल चीज हैं इससे हमें कुछ नहीं लेकिन सहरखान का अलग ही मजा है, जब यह आते हैं रात को आते हैं बहुत अच्चा लगता है, गलियों में आते हैं कूचों में आते हैं हम सबको जगाते हैं।”
सहरखान कहते हैं कि रमजान खत्म होने पर उन्हें दुख होता है क्योंकि इस पाक काम और अल्लाह की खास दुआओं के लिए उन्हें साल भर इंतजार करना पड़ेगा।