Jammu: जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर के पास गोटापोरा गांव में कुछ दिव्यांग कारीगरों का हुनर काबिले तारीफ है, ये कलाकार हाथ से कश्मीर के खास सामान बनाते हैं। वे उनमें बारीक कलाकृतियां और पैटर्न उकेरते हैं।
इस ग्रुप को “स्पेशल हैंड्स ऑफ कश्मीर” भी कहा जाता है। पैदाइशी प्रतिभा उन्हें न सिर्फ आजीविका, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी दिलाती है, बडगाम जिले की 70 फीसदी आबादी सोजनी बुनने के काम में जुटी है। कश्मीर की ये कला 600 साल पुरानी है, जिसे ये कारीगर आबाद रखे हुए हैं। इन कारीगरों के हुनर की तारीफ देश-विदेश में होती है। इस पारंपरिक कला की बदौलत उनकी आजीविका भी अच्छी चल रही है।
हालांकि अब बाजार में सस्ते उत्पादों की भरमार है, दूसरी ओर युवाओं में बुनाई को पेशा बनाने में रुचि नहीं है। इन वजहों से कश्मीर की खास सोजनी की कला का वजूद खतरे में पड़ता दिख रहा है।
स्पेशल हैंड्स ऑफ कश्मीर के संस्थापक तारिक अहमद मीर ने कहा कि “स्पेशल हैंड्स ऑफ कश्मीर हमने 2010 में बनाई है। शुरुआत हमने घर से इसकी की थी। मेरे पापा, इस काम के मास्टर आर्टिजन हैं और मेरे दो भाई, जो खुद विकलांग थे, तो हमने घर से स्टार्ट किया, लेकिन दो-तीन साल में बहुत सारे लोग इन्स्पायर होके हमसे जुड़ गए औऱ देखते ही देखते एक कारवां की सूरत में हमारे पास स्पेशल हैंड्स ऑफ कश्मीर बन गया।”
इसके साथ ही कारीगरों का कहना है कि “मैं एक बार सीडीआई गया था, तो मैं तारिक भाई को देखा, जो स्पेशल हैंड्स ऑफ कश्मीर का संगठन जो चलाता है। उसके साथ जब मैंने बात की तो उसने कहा कि मैं विकलांग लोगों के साथ काम करता हूं। मैं आंत्रप्रेन्योर भी हूं। उसने बोला कि क्या आप हमारे साथ काम कर सकते हो? मैंने बोला, हां, क्यों नहीं। ये तो एक इबादत भी है। एक तो मैं अपना रोजगार कमाता हूं यहां पे, और कभी-कभार जब मदद की जरूरत होती है तो मैं यहां पर आता हूं और इनको हेल्प भी करता हूं।”