तीन फरवरी के इतिहास में दर्ज है सैंकड़ों लोगों की मौतें, जाने क्या हुआ था

नमिता बिष्ट
देश-दुनिया में हर दिन कुछ ना कुछ घटता रहता है। कुछ सुखद तो कुछ दुखद घटनाएं हर दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाती है। इसी तरह देश-दुनिया के इतिहास में तीन फरवरी के दिन भी कई घटनाएं दर्ज है। जिसमें यह दिन कुछ दुखद घटनाओं का भी साक्षी रहा है। तो चलिए कुछ इतिहास के पन्नों को पलट कर जानते हैं कि आज के दिन यानी 3 फरवरी को देश और दुनिया में कौन-कौन सी दुखद घटनाएं घटी थीं…….

1954 में कुंभ के दौरान दर्दनाक हादसा
कुंभ के दौरान करोड़ों लोग प्रयागराज (इलाहाबाद) के संगम क्षेत्र में जमा होते हैं और पवित्र गंगा मं स्नान कर अपने पापों से मुक्ति पाते हैं। एक जगह पर इतने लोगों के जमा होने के बावजूद कुंभ में कोई भी दुर्घटना नहीं होती। लेकिन 3 फरवरी 1954 में कुंभ के दौरान ऐसी दर्दनाक दुर्घटना हुई की जो हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई।

उस वक्त क्या हुआ था?
दरअसल 3 फरवरी 1954 को मौनी अमावस्या थी और इसी दिन शाही स्नान भी था। बता दें कि जिस दिन कुंभ में शाही स्नान होता है उस दिन काफी संख्या में लोग जमा होते हैं और श्रद्धा की डुबकी लगाते हैं। उस वक्त भी ऐसा ही था, लेकिन अचानक आसपास व्यवस्था बिगड़ गई और लोग इधर-उधर भागने लगे। इससे कई लोग भीड़ में दब गए हैं और भगदड़ इतनी खतरनाक थी कि जो व्यक्ति एक बार गिर गया, उसे उठने का मौका तक नहीं मिला। वो दबा रहा और इसी तरह से सैंकड़ों लोगों की कुचलने से या दम घुटने से मौत हो गई।

नेहरू को माना जाता है जिम्मेदार!
1954 कुंभ में मची भगदड़ के कई कारण बताए जाते हैं। यहां तक इस भगदड़ मचने के कारण पर सियासत भी काफी होती रही है। दरअसल इस भगदड़ से पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का नाम जुड़ा है। उस वक्त नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे और वो कुंभ की तैयारियों का जायजा लेने वाले खुद वहां पहुंचे थे। कई पत्रकारों और रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि नेहरू ने उसी दिन वहां का दौरा किया था और उनके वीआईपी मूमेंट की वजह से भीड़ को रोक लिया गया था। जब भीड़ काफी ज्यादा बढ़ गई तो भगदड़ मच गई और कई लोगों की जान चली गई। हांलाकि कुछ विशेषज्ञ इस बात को सही नहीं मानते।

हाथी के भड़कने को भी बताया जाता है कारण
वैसे ये भी कहते हैं कि 1954 के कुंभ मेले में एक हाथी भड़क गया था, जिसके कारण भगदड़ हुई थी। इसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी और कई घायल हुए थे। उस घटना के बाद से मेले में हाथियों का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित है।

500 से अधिक लोगों की गई थी जान
1954 के कुंभ मेले में अभी तक मरने वालों का आंकड़ा साफ नहीं है, क्योंकि अलग अलग रिपोर्ट में मरने वाले लोगों की संख्या पर अलग-अलग दावा किया जाता है। वैसे अनुमान है कि वहां लगभग 500 से अधिक लोगों की जान गयी थी। करोड़ों लोगों को संगम तक खींच लाने वाले आस्था के इस पवित्र पर्व पर हुई यह अनहोनी हजारों आंखों में सदा के लिए आंसू छोड़ गई। इस घटना के बाद कुंभ मेले के दौरान की जाने वाली व्यवस्थाओं और मेला प्रारूप में व्यापक बदलाव किए गए।

2006 में मिस्र में यात्री नौका डूबने से हादसा
इसी तरह साल 2006 में वह तीन फरवरी का ही दिन था, जब मिस्र में एक यात्री नौका के लाल सागर में डूब जाने के कारण एक हजार से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।

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