Nagpur: रामनामी समुदाय से जुड़े हजारों लोगों के शरीर पर सिर्फ भगवान श्रीराम का नाम ही दिखाई देता है। इस समुदाय से जुड़े लोग महाराष्ट्र के नागपुर में हुए एक कार्यक्रम में भजन गाते दिखाई दिए। रामनामी समुदाय मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के तीन जिलों में रहता है। इस समुदाय की शुरूआत 200 साल पहले हुई थी। रामनामी समुदाय की पहचान पूरे शरीर पर राम-राम के स्थाई गोदना या टैटू की वजह से है। राम-राम का ये गोदना उनके सिर से लेकर पैर तक शरीर के हर हिस्से में गुदवाया जाता है।
यह प्रथा भगवान श्रीराम के लिए उनकी भक्ति और जाति व्यवस्था को दरकिनार करने का एक तरीका है, रामनामी समुदाय के महासचिव गुलाराम के मुताबिक करीब 150-200 साल पहले जाति व्यवस्था की वजह से पूर्वजों को मंदिरों में जाने की इजाजत न मिलने पर उन्होंने अपने शरीर पर ही राम-राम गुदवा कर ये संदेश दिया कि भले ही वे मंदिर के अंदर नहीं जा सकते लेकिन उनके दिलों से भगवान श्रीराम को कैसे निकालेंगे।
रामनामी समुदाय की एक अनूठी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान है जो उन्हें इस क्षेत्र के दूसरे समूहों से अलग करती है। उनकी मान्यताएं और प्रथाएं भगवान राम में उनके विश्वास और सामाजिक समानता की उनकी खोज में शामिल हैं। इनका मकसद भजन और जीवन के जरिये राम नाम को लोगों तक पहुंचाना और लोगों को सत्य, अहिंसा, परोपकार और नैतिकता के रास्ते पर चलने और शुद्ध सात्विक बनने और किसी भी प्रकार के नशे का सेवन न करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करना
है।
साउथ सेंट्रल जोन कल्चरल जोन (एससीजेडसीसी) की तरफ से आयोजित आर्ट एंड क्राफ्ट फेयर में हिस्सा लेने के लिए रामनामी समुदाय से जुड़़े लोग नागपुर पहुंचे थे, गुलाराम ने बताया कि रामनामी समुदाय के लोग शाकाहार का पालन करता है और हर तरह के नशे से दूर रहते हैं। समुदाय के महासचिव गुलाराम ने बताया कि रामनामी समुदाय के कुछ लोग आने वाले दिनों में अयोध्या में श्रीराम मंदिर में दर्शन के लिए जाएंगे।
रामनामी समुदाय के महासचिव का कहना है कि “डेढ़ से 200 साल पहले जब जाति-पाति, वर्ण व्यवस्था हावी था, तब हमारे पूर्वज के लोगों को मंदिर में जाने से निषेध कर दिया गया, तो हमारे लोगों ने कहा कि ठीक है, आप हमें मंदिर में नहीं जाने देंगे, मूर्ति पूजा नहीं करने देंगे, लेकिन जो राम नाम कण-कण में बसा है, सबके हृदय में बसा है, उससे आप हमें अलग नहीं कर सकते, तो हमारे लोगों ने अपने शरीर पर राम-राम लिखाकर अपने शरीर को ही मंदिर बना लिया।”