महाशिवरात्रि पर शिव-पार्वती ने इस मंदिर में विवाह कर किया था देवभूमि को पावन

आज भगवान शिव की उपासना और पूजा का सबसे बड़ा पर्व महाशिवरात्रि है। शिव के भक्तों के लिए महाशिवरात्री का दिन किसी महापर्व से कम नहीं है। सुबह से ही देशभर के सभी शिव मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। आज के दिन शिव भक्त व्रत कर भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना में लीन हैं। महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। शिवजी ने तपस्या से प्रसन्न होकर फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन माता पार्वती के साथ विवाह किया था। इसलिए प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
देवों की भूमि कही जाने वाले उत्तराखंड की देवभूमि में ही माता पार्वती ने तपस्या की थी। कहा जाता है कि माता पार्वती ने केदारनाथ के पास स्थित गौरी कुंड में तपस्या की थी और फिर गुप्तकाशी में भगवान शिव के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था। जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया था। जिसके बाद उत्तराखंड की भूमि शिव पार्वती के विवाह से पावन हुई थी। क्या आप जानते हैं कि कहां भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। नहीं जानते तो आइए जानते हैं आगे उस जगह के बारे में जहां साक्षात भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है विशेष पौराणिक त्रियुगीनारायण मंदिर। इस मंदिर के अंदर सदियों से अग्नि प्रज्जवलित है। इसी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर शिव-पार्वती ने विवाह किया था। त्रियुगीनारायण मंदिर वही पवित्र स्थल है जहां भगवान शिव जी और माता पार्वती का शुभ विवाह हुआ था। वेदों में उल्लेख है कि यह त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है। जबकि केदारनाथ व बदरीनाथ द्वापरयुग में स्थापित हुए। यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर विष्णु भगवान ने वामन देवता का अवतार लिया था।

मंदिर के अंदर कई युगों से अग्नि प्रज्वलित हो रही है इसलिए इस स्थल का नाम त्रियुगी हो गया यानी अग्नि जो तीन युगों से जल रही है।त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। यहां शिव पार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था। जबकि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे। उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था।

विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है। इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है।विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं। इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है।जो भी श्रद्धालु इस पवित्र स्थान की यात्रा करते हैं वे यहां प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती के आशीष से हमेशा मंगलमय बना रहे।

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