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रिपोर्ट- ऋतु रोहिणी
पटना. साल 2021 अब खत्म होने वाला है और देश में कड़कड़ाती ठंड के बीच बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने अपने बयान से बिहार की राजनीति में गर्माहट ला दी. उनके इस बयान की चौतरफा चर्चा रही. किसी ने खुलेआम जीतनराम मांझी के पार्टी ऑफिस के बाहर अपना विरोध जताया तो कोई मांझी की जीभ काट लाने पर 11 लाख के इनाम की घोषणा कर डाली. बत दें कि अपने हालिया बयान में मांझी ने ब्राह्मणों के प्रति आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया था, जिसमें उन्होंने कहा कि ब्राह्मण सिर्फ दलितों के घर पूजा करवाकर पैसे लेकर चल जाते हैं और दलितों के यहां खाना तक नहीं खाते. इस बयान के दौरान ब्राह्मणों के लिए मांझी ने अपशब्द का भी इस्तेमाल किया.
दरअसल, जीतनराम मांझी ने साल 2021 में कई बार अपने ऊटपटांग बयानों से सुर्खियां बटोरी हैं. किसी ने उनके उम्र से जोड़ दिया और कहा कि अब उन्हें आराम करना चाहिए. वहीं, किसी ने कहा कि अधिक उम्र होने के बाद कई लोग बहकने लगते हैं इसलिए मांझी जी भी बहकने लगे हैं. बहरहाल, साल 2021एक तरह से जीतन राम मांझी के ऐसे ही बयानों के लिए भी याद किया जाएगा. ऐसे में आइए आपको बताते हैं कि वर्ष 2021 में कितनी बार मांझी के बोल बिगड़े.
ब्राह्मणों के लिए अपशब्द का इस्तेमाल – 18 दिसंबर को पटना में भुइयां समाज के सम्मेलन में जीतन राम मांझी ने ब्राह्मणों के खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजी की थी. उन्होंने कहा था कि ‘दलित समाज में आजकल सत्य नारायण भगवान की पूजा का प्रचलन काफी तेज हो गया है. जगह-जगह ब्राह्मण जाकर सत्य नारायण भगवान की पूजा कराते हैं, लेकिन खाना नहीं खाते हैं. सिर्फ पैसा लेते हैं.
शराब पीना गलत नहीं है
कुछ दिनों पहले ही में जीतन राम मांझी ने शराबबंदी को लेकर बयान दिया था जिसको लेकर सोशल मीडिया में काफी हलचल रही थी. उन्होंने कहा था कि शराब पीना गलत नहीं है. उन्होंने मेडिकल सांइस का हवाला देते हुए कहा कि इसमें भी ये सिद्ध है कि थोड़ी-थोड़ी मात्रा में शराब का सेवन करना लाभकारी है. इस बयान में जीतनराम मांझी यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा कि बिहार में DM-SP समेत कई मिनिस्टर और विधायक भी शराब का सेवन करते हैं. लेकिन, शराबबंदी के नाम पर सिर्फ गरीबों और दलितों पर ही दोष मढ़कर उन्हें जेल भेज दिया जाता है.
भगवान राम महापुरुष नहीं
इसी साल सितंबर महीने में जीतनराम मांझी ने प्रभु श्री राम के महापुरुष कहलाये जाने और उनके अस्तित्व पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि हम रामायण की कहानी को सत्य नहीं मानते हैं. राम को यदि महापुरुष में गिना जाए और उन्हें जीवित बताया जाए तो ऐसी बातों का न मैं समर्थन करता हूं और न ही विश्वास करता हूं. उनका ये बयान सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था जिसके चलते उन्हें हिन्दू विरोधी भी बताया गया था.
मंदिर-मस्जिद को नहीं मानते
मांझी का ये बयान इसी साल जुलाई का है जब उन्होंने धार्मिक प्रतिष्ठानों पर ही सवाल उठा दिया था और कहा था कि वो किसी भी धर्म को नहीं मानते हैं. लोग मंदिरों में जाकर घंटी बजाते हैं, मुस्लिम-मस्जिद में जाकर नमाज अदा करते हैं. इसमें वो विश्वास नहीं करते. महात्मा गांधी ने कहा था कि कर्म ही पूजा है, हमें बाबा साहब डॉ भीम राव अंबेडकर के बताए रास्तों पर चलना चाहिए.
जीतनराम मांझी के इन बयानों के जरिए खूब सुर्खियां बटोरीं. हालांकि, ब्राह्मणों को लेकर उनके हालिया बयान ने उन्हें बैकफुट पर धकेल दिया जिसके डैमेज कंट्रोल के लिए उन्हें काफी मेहनत भी करनी पड़ी. मांझी ने अपने आवास पर दलित-ब्राह्मण एकता महाभोज कर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की. अब भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने इस मुद्दे को ज्यादा तूल नहीं देने की नसीहत दी है. मोदी ने अपनी ही पार्टी के उन नेताओं को हिदायत दी है जो अब भी जीतन राम मांझी के बयान पर कोहराम कर रहे
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