Pitru Paksha: प्रयागराज, वाराणसी और हरिद्वार जैसे धार्मिक शहरों में पितृ पक्ष शुरू होने पर हिंदू श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए समर्पित 16 दिनों का ये पर्व पितृ पक्ष कहलाता है। आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण इन दिनों में परिवार विशेष पूजा-पाठ करते हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि ये दिवंगत आत्माओं को परलोक में सुख, शांति और समृद्धि देते हैं।
पितृ पक्ष के मौके पर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में लोग अपने पूर्वजों से जुड़े विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान करते हैं, क्योंकि प्रयागराज हिंदू मान्यता के अनुसार प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। रविवार की सुबह सैकड़ों लोग संगम तट पर इन अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए इकट्ठा हुए।
पितृ पक्ष के मौके पर इसी तरह के दृश्य वाराणसी में भी देखे गए, जहां पर लोग पिशाच मोचन कुंड पर इकट्ठा हुए। ये कुंड दिवंगत आत्माओं की पूजा-पाठ के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। कई लोगों का मानना है कि पितृ पक्ष के दौरान घर में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि ये विशेष दिन पूरी तरह से पूर्वजों और पितरों को समर्पित होते हैं।
हरिद्वार में पितृ पक्ष से जुड़े विशेष अनुष्ठानों को प्राचीन नारायणी शिला मंदिर में किया जाता है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि भगवान विष्णु के शरीर का मध्य भाग यानी उनकी गर्दन से लेकर नाभि तक का भाग यही पर है। पितृ पक्ष का समय सात सितंबर से 21 सितंबर तक निर्धारित है, इस दौरान पूर्वजों की पूजा और उनका तर्पण उनके परिजनों द्वारा किया जाएगा।
पुजारी नीरज कुमार पाण्डेय ने बताया कि “घर के अंदर कोई शुभ काम नहीं होगा। कोई देव पूजा नहीं होगा। पितरों की पूजा होगी। पितरों के लिए पूजा होगी पिंडदान होगा, तर्पण होगा, ब्राह्मण भोजन होगा। ब्राह्मण को दान कराइए। ब्राहमण को वस्त्र चढ़ाइए। जो भी करना है पितृ के निर्वत्य काम करना है। कोई भी शुभ काम नहीं होगा। बस 14 दिन का इस बार पितृ पक्ष, 14 दिन में आप अपने पितृों को जितना ज्यादा से ज्यादा खुश कर सकते हैं, वो किस प्रकार है उनको हम तर्पण करेंगे वो खुश होंगे। उनको हम पिंड करेंगे वो खुश होंगे। बाकी ब्राह्मण को खिलाने से, दान देने से हमारे पितरों का आशीर्वाद हमको मिलता है।”
पुजारी तिलक जोशी ने कहा कि परम पावनी नारायणी शिला है इसकी दर्शन मात्र करने से ही 100 मात्र कुल, 100 प्रति कुल की मुक्ति हो जाती है और यहां पर एक प्रेत शिला भी है उनके बराबर में। तो वहां पर जो अपने पितरों को जो प्रेत जल चढ़ाता है, कोई प्रेत लोक में जो पितृ हैं वो उतर जाते हैं। तो यहां पर जो यहां पर भगवान नारायण जी का अर्धगया का आ गया है कंठ से नाभि तक का हिस्सा।”