Kota Suicide: इस साल कोटा के कोचिंग हब में 23 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की है, जो अब तक की सबसे ज्यादा संख्या है। कोटा में अधिकारियों ने इन दुखद घटनाओं को रोकने के लिए कई उपाय किए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इन आत्महत्याओं के पीछे प्रमुख कारण माता-पिता का अपने बच्चों से ज्यादा अपेक्षाएं हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक माता-पिता अपने बच्चों को ये बता रहे हैं कि एक बार जब वे कोचिंग संस्थान में दाखिला ले लेते हैं तो वापसी का कोई रास्ता नहीं हैं।
शीर्ष पुलिस अधिकारियों का ये भी कहना है कि अक्सर जब माता-पिता को उनके बच्चों के शैक्षणिक और दूसरे दबावों का सामना करने में असमर्थता के बारे में जानकारी देने की कोशिश की जाती है तो विरोध का सामना करना पड़ता है। इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं-नीट और जेईई की तैयारी के लिए हर साल ढाई लाख से ज्यादा छात्र-छात्राएं कोटा आते हैं।
व्यस्त कार्यक्रम, कड़ा मुकाबला, बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव, माता-पिता की अपेक्षाओं का बोझ और घर की याद वो चुनौतियां हैं, जिनका छात्र-छात्राओं को इस माहौल में सामना करना पड़ता है। अधिकारियों का कहना है कि कई बार छात्र-छात्राओं पर ये भी दबाव होता है कि उनके माता-पिता ने कोचिंग कराने के लिए काफी खर्च किया है।
Kota Suicide:
छात्र-छात्राओं की काउंसलिंग करने वाले मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि माता-पिता को अपने बच्चे के नाजुक मानसिक स्वास्थ्य को समझना चाहिए, जिसे अक्सर गंभीरता से नहीं लिया जाता है। पंखों में एंटी-हैंगिंग डिवाइस से लेकर बालकनियों और खुले स्थानों में जाल और ग्रिल तक, हॉस्टल वार्डन की ‘दरवाजे पे दस्तक’ जैसी छात्र-छात्राओं से जुड़ने की पहल और पुलिस की तरफ से बनाया गया स्टूडेंट सेल उन उपायों में से हैं जो अधिकारियों ने कोटा में छात्रों की आत्महत्या रोकने के लिए किए हैं।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि असली चुनौती ये है कि माता-पिता अपने बच्चों पर पड़ने वाले दबावों को समझें और पढ़ाई में उनके नंबरों की जगह उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।