Jammu-Kashmir: कश्मीर में वर्चुअल ऑटिज्म बढ़ रहा है। पिछले साल श्रीनगर के चाइल्ड गाइडेंस एंड वेल बीइंग सेंटर में 78 दिव्यांग बच्चे थे। वर्चुअल ऑटिज्म शब्द का इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया जाता है जो सोशल मीडिया, वीडियो गेम और ऑनलाइन कम्यूनिकेशन जैसी वर्चुअल एक्टिविटीज में जरूरत से ज्यादा समय बिताते हैं।
इस आदत को देखते हुए डॉक्टर माता-पिता से अपील कर रहे हैं कि वे अपने बच्चों में मोबाइल जैसे गैजेट्स का इस्तेमाल सीमित करें। ये उनकी मानसिक सेहत बनाए रखने के लिए जरूरी है। जानकारों के मुताबिक कश्मीर में वर्चुअल ऑटिज्म के बढ़ते मामलों के लिए काफी हद तक मोबाइल फोन तक बच्चों की आसान पहुंच और माता-पिता का ढीला रवैया जिम्मेदार हैं।
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि “एक से 10 साल तक की उम्र को हम फॉर्मेटिव इयर्स कहते हैं, जिसमें बच्चे का जहन काफी प्रभावित होता है। अगर इस उम्र में मोबाइल जैसी चीज की लत लग जाए तो इसके बच्चे की पर्सनैलिटी डेवलपमेंट पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है और ये बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को खराब कर सकता है।”