Uttarkashi: जानें उत्तरकाशी के माघ मेले का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व

Uttarkashi: उत्तरकाशी मे माघ मेला हर साल बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है, धार्मिक मान्यताओं में यह मेला महाभारत काल से जुड़ा है. ऐतिहासिक महत्व यह है कि यह मेला भारत और तिब्बत के व्यापार का साक्षी रहा है।

जिला पंचायत हर साल इस मेले का आयोजन करता आ रहा है, लेकिन 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद ये भारत और तिब्बत के व्यापार भी बंद हो गया था। माघ मेले का पौराणिक नाम बाड़ाहाट का थौलू है, बाड़ाहाट का अर्थ बड़ा हाट यानी बड़ा बाजार है। बाड़ाहाट में आजादी से पहले तिब्बत के व्यापारी यहां सेंधा नमक, ऊन, सोना जड़ी-बूटी, गाय, घोड़े बेचने के लिए आते थे।

ऐतिहासिक महत्व:
उस समय यह मेला एक माह तक चलता था। तिब्बत के व्यापारी यहां से धान, गेह लेकर वाप्स लौटते थे। इस मेले में टिहरी और उत्तरकाशी के ग्रामीण अपने देवताओं के साथ आते थे। गंगा स्नान के साथ-साथ खरीददारी भी करते थे। उत्तरकाशी का माघ मेला राजशाही के नियंत्रण में था। राजशाही के इस माघ मेले में तिब्बत से आने वाले आापारियों का हिमान-किताब रखने के लिए अंतिम मालगुजार मुखबा निवासी पंडित विद्यादत्त सेनवाल थे।

यह तिब्बत के व्यापारी टिहरी राज के आदेश अनुसार उत्तरकाशी के रामलीला मैदान में उसमें लेकर आयोजन करते हैं, भले यहां आज बहुत बड़ा रूप ले चुका है और 9 दिन तक चलने वाले इस मेले का भव्य रूप दिया गया है जिसमें स्थानीय लोग पर चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

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