युवावस्था में प्रवेश कर चुका उत्तराखंड, पर पलायन का दंश अब भी बरकरार

नमिता बिष्ट

उत्तराखंड राज्य अपनी स्थापना के 22 साल पूरे कर 23 साल का हो गया है। लंबे जन आंदोलन और कई आंदोलनकारियों के बलिदान के बाद अस्तित्व में आए इस प्रदेश ने युवावस्था की दहलीज पर कदम बढ़ाने के साथ कई उपलब्धियों को भी अपने दामन में सहेजा है। सड़क, रेल और हेली सेवा कनेक्टिविटी की महत्वाकांक्षी परियोजनाएं देवभूमि उत्तराखंड के सपनों में रंग भर रही हैं। लेकिन उत्तराखंड में पलायन का दंश अभी बना हुआ है।

पलायन पर रोक नहीं, खाली हो रहे गांव
पहाड़ का पानी और जवानी रोकने के मकसद से बने उत्तराखंड में बीते 22 साल में 32 लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं। 2018 की उत्तराखंड पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य गठन के बाद उत्तराखंड के 1,702 गांव वीरान हो चुके हैं। करीब हजार गांव ऐसे हैं, जहां सौ से कम लोग रहते हैं।

बीते 10 साल में 474 गांवों की आबादी 50% घटी
बीते दस साल में 474 गांवों में आबादी 50% तक घट गई है। पलायन के चलते सामरिक चिंताएं बढ़ी हैं। पलायन रोकने को बने आयोग के पदाधिकारी खुद पौड़ी से पलायन कर दून सचिवालय में जम गए। बता दें कि पौड़ी में पलायन के कारण 500 से अधिक गांव पूरी तरह से वीरान हो चुके हैं, जहां घरों की दहलीज सुनी और घरों के किवाड़ में अब सिर्फ जंक खाते ताले ही नजर आते हैं।

1702 गांव वीरान…ये है पलायन की तस्वीर
• 3946 गांवों के 1.18 लाख लोग कर चुके पलायन
• 6338 गांवों के 3.83 व्यक्तियों का अस्थायी पलायन
• 1702 गांव अब तक हो चुके हैं वीरान
• 36.2 प्रतिशत है राज्य के गांवों से पलायन की दर, जो राष्ट्रीय औसत से ज्यादा

ये है पलायन की वजह…आंकड़ों में
कारण——————————————– प्रतिशत
आजीविका-रोजगार- 50.16
शिक्षा- 15.21
स्वास्थ्य- 8.83
वन्यजीव से फसल क्षति- 5.61
कृषि पैदावार में कमी- 5.44
मूलभूत सुविधाओं की कमी- 3.74
देखा-देखी- 2.52
अन्य- 8.49

पलायन रोकने को लेकर सरकार गंभीर
वहीं पलायन निवारण आयोग के उपाध्यक्ष डा एसएस नेगी का कहना है कि पलायन थामने को लेकर सरकार गंभीर है। सरकार कुछ योजनाएं लेकर आई है और कुछ पर काम चल रहा है। यह सही है कि पलायन थामने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है, लेकिन सरकार अपने प्रयासों में निरंतर जुटी है। आने वाले दिनों में इसके आशानुरूप परिणाम आएंगे।

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