Uttarakhand: एक टीचर का अनूठा स्कूल, छात्र-छात्राएं तय करते हैं क्या है पढ़ना

Uttarakhand: गांव के बच्चों को समग्र शिक्षा और अलग तरह का वातावरण देने के लिए कमलेश अटवाल ने ग्रामीण उत्तराखंड में एक पब्लिक स्कूल की शुरुआत की, इस खास स्कूल में बच्चे ही पाठ्यक्रम को तय करते हैं, यानी वह खुद तय करते हैं कि क्या पढ़ना है।

जब उत्तराखंड के मिलक नजीर गांव में रहने वाले शिक्षक कमलेश अटवाल ने महसूस किया कि उनके गांव के छात्र-छात्राओं में अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने और सही करियर चुनने के बारे में जागरूकता की कमी है तो उन्होंने उनकी मदद करने की ठान ली, कमलेश का लक्ष्य ऐसा माहौल बनाना था, जहां छात्र-छात्राएं और शिक्षक बेहतर भविष्य के लिए कोशिश करते हुए सीखने और सिखाने में सहयोग करें।

स्कूल के डायरेक्टर कमलेश अटवाल ने बताया कि “मुझे इस बात पर भी गर्व होता है कि अगर मैं कोई रिपोर्ट लिख रहा हूं तो मैं अपने बच्चों के पास जाता हूं, इसको एडिट कर दो करके, इसमें स्पेलिंग मिस्टेक है, इसमें ग्रामेटिकल मिस्टेक है। जिन बच्चों को आपने लिखना सिखाया था, वो आपकी कॉपी चेक करते हैं। इस बात पर भी गर्व होता है कि जब कोवि़ड के दौरान सब स्कूल बंद थे, आप ही के स्कूल के बच्चे अपने गांव में ही लाइब्रेरी चला रहे थे, अपने स्कूल से किताबें लेकर, तब आपको समझ में आया कि आप अपने बच्चों को क्यों नहीं और अच्छी तरह पढ़ा सकते हो, तब हमनें इंस्पायर होके, एक जगह पर पेड़ के नीचे बच्चों को पढ़ाना सिखाया, पढ़ने की कोशिश करी उनकी साथ, क्लास करने की कोशिश करी।”

इस स्कूल का बिल्कुल अलग तरह का कॉन्सेप्ट है, स्कूल में बच्चों को लीडरशिप स्किल सि‍खाने के लिए खास तरह से पढ़ाया जाता है। स्कूल का लचीला पाठ्यक्रम और पढ़ने की आजादी अलग-अलग गांवों और अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र-छात्राओं को अपनी ओर खींचता है। वे यहां समय बिताना पसंद करते हैं।

छात्रों का कहना है कि “जो हमारे स्कूल का सेंटर है, फोकस है, वो हमारे स्टूडेंट्स ही हैं, क्योंकि जब मैं देखती हूं अलग-अलग चीजें, उसमे स्टूडेंट्स अपनी ओनरशिप ले रहे हैं, अलग-अलग प्रोजेक्ट्स, उसमें भी, ऐज ए टीचर, मतलब जो हमारे टीचर हैं, वो ऐज ए फैसिलिटेटर हैं, उनका रोल होता है ऐज ए फैसिलिटेटर कि वो खाली फैसिलिटेट करें और बच्चों को खोजने दें, मतलब स्पून फीडिंग वो नहीं करा दें कि हमको वो सब कुछ हमको लाकर दे दें, वो कोशिश करते हैं कि बच्चे खुद से चीजें ढूंढें, बच्चे खुद से एक्सपीरियंस करें।”

छात्र-छात्राओं के माता-पिता स्कूल के पढ़ाने के अनूठे तरीके से बेहद खुश हैं। उन्हें लगता है कि उनके बच्चों का भविष्य उज्ज्वल है। ऐसे वक्त में जब शिक्षा का व्यावसायीकरण हो रहा है, उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में एक पब्लिक स्कूल के छात्र-छात्राओं ने अलग-अलग इलाकों में 20 से ज्यादा सामुदायिक केंद्र बनाए हैं, इनका फोकस उन छात्र-छात्राओं को सीखने की जगह देना है जो शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते हैं।

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