Uttarakhand: 2013 में केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा के बाद उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के बार्सू गांव में बड़े पैमाने पर पलायन हुआ जिससे इस गांव के ज्यादातर घर खाली हो गए।
2014 में विजय सेमवाल और उनके सहयोगी राम सिंह अपने इस गांव में लौटे और सूने पडे अपने घरों के साथ खेतों को भी आबाद किया, आज उनकी धरती फसलों से अटी पडी है।
विजय सेमवाल ने कहा कि “जब हम शुरू में आए तो यहां पर झाड़ियां चारों तरफ जमी थी, मकान सारे बंजर या खंडर हो गए थे, तो वही मकानों को हमने दोबारा से फिर उनको बनाना शुरू किया बनाके, उसके बाद हम उनमें रहने बैठे कुछ पुरानी गौशाला टूटी खंडर हो रही थी तो वो भी गौशाला हमने ठीक कर दी। उसमें गाय पालना शुरू की।”
विजय की कोशिशों से दूसरे लोग भी जागे और उन्होंने अपने गांव की राह फिर पकड़ी। आज इस गांव में काफी लोग लौट आए हैं और बाकी भी आने की सोच रहे हैं। हमने गांववालों को बोला कि खेतों को तो चलो सारे हरे हम कर देंगे पर गांव में आकर आप लोग भी अपने मकान बनाना शुरू करो तो लोगों ने करीब 10 से 12 मकान यहां पर बन चुके हैं और दो तीन किसान भी यहां पर हमें देखकर खेती करने के विषय में सोच रहे हैं और कर भी रहे हैं और कई लोग अभी वापस आने की संभावना है।”
उन्होंने कहा कि “गांव में एक बार पलायन की वजह से गांव बंजर हो चुका था। मकान रहने लायक नहीं रह गए थे। जो आवश्यकता है मूलभूत बिजली, पानी, रास्ते ये सब खत्म हो चुके थे। लेकिन उनके आने के बाद उन्होंने पहले स्वयं की व्यवस्था बनाई। स्वयं के रहने का ठिकाना बनाया रास्तों की सफाई की गई कच्चे रास्तों पर ही कंडाली काट कर झाड़ी काट के रास्ते बनाए। और उसके बाद बिजली हो गई आज पानी आ गया है रास्ते सीमेंट वाले बन चुके हैं।”
एक समय भुतहा गांव माना जाने वाले बार्सु को दोबारा आबाद करने में विजय और उनके साथियों ने खूब मेहनत की है। उनकी मेहनत का असर अब दिख भी रहा है। वह आवारा घूम रही गायों को घर लाए और उनके गोबर से खाद बनाई। इस खाद की बदौलत आज उनके खेतों में माल्टा, नींबू और संतरे जैसे 400 फलों के पेड़ के साथ मौसमी सब्जियों की खूब अच्छी फसल हो रही है।
उनकी कड़ी मेहनत रंग ला रही है, अब एक दर्जन से ज्यादा ग्रामीण मिलकर गांव की दशा बदलने की कोशिशों में शिद्दत से जुट गए हैं।