अद्भुत है देवभूमि का यह रहस्यमयी गुफा मंदिर,यहां दर्शन से मिलता है चारधाम यात्रा जितना पुण्य

उत्तराखंड में चारधाम यात्रा अपने चरम पर है। चारधाम दर्शनों के लिए देश-विदेश से रिकॉर्ड संख्या में तीर्थयात्री यहां पहुंचकर पुण्य अर्जित कर रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि चारधाम के अलावा देवभूमि उत्तराखंड में ऐसी भी के मंदिर है, जहां के दर्शन करने से चारधामों के दर्शन करने जितना पुण्य मिलता है। साथ ही इस मंदिर दुनिया के खत्म होने का रहस्य भी छिपा हुआ है।

उत्तराखंड की पावन धरती पर ऐसे कई स्थान हैं जो अपने पौराणिक इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता को संजोए हुए हैं। इस वजह से इनकी पहचान दुनिया भर में है। इन्हीं में से एक है पिथौरागढ़ जिले में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर। यह मंदिर रहस्य और सुंदरता का बेजोड़ मेल है। समुद्र तल से 90 फीट नीचे इस मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए बहुत ही संकीर्ण रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। स्कंद पुराण में भी इस मंदिर की महिमा का वर्णन है।

मंदिर के दर्शन मात्र से मिलता है चारधाम यात्रा का फल

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमांत कस्बे गंगोलीहाट में चूना पत्थर की एक प्राकृतिक गुफा है। इस गुफा को पाताल भुवनेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह गुफा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। यह पवित्र और रहस्यमयी गुफा अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए है। मान्यता है कि इस गुफा में 33 करोड़ देवी-देवताओं ने अपना निवास स्थान बना रखा है। इस गुफा में धार्मिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई प्राकृतिक कलाकृतियां स्थित हैं। यह गुफा भूमि से 10 फीट नीचे है, लगभग 160 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला है। स्कंदपुराण में वर्णन है कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी-देवता उनकी स्तुति करने यहां आते हैं। स्कंदपुराण के 103वें अध्याय के श्लोक 21 से 27 के अनुसार, पाताल भुवनेश्वर भूतल का सबसे पावन क्षेत्र है। पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां एकसाथ चारों धाम के दर्शन होते हों। अर्थात् यहां चार धामों की यात्रा का फल मंदिर के दर्शनों से प्राप्त होता है। श्लोक 30 से 34 के अनुसार इसके समीप जाने मात्र से व्यक्ति 100 कुलों का उद्धार कर लेता है।

पौराणिक इतिहास

इस गुफा की खोज त्रेता युग में अयोध्या पर शासन करने वाले सूर्य वंश के राजा ऋतुपर्णा ने की थी। राजा ऋतुपर्ण ने जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफा में प्रवेश किया तो उन्होंने इस गुफा में महादेव शिव सहित 33 करोड़ देवी-देवताओं के साक्षात दर्शन किये थे। इसके अलावा द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु आदि शंकराचार्य का 822 ई. के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया।

मान्यताएं एवं विशेषताएं

हिंदू धर्म में भगवान गणेश जी को प्रथम पूज्य माना गया है। गणेश जी के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने क्रोध में गणेश जी का सर धड़ से अलग कर दिया था। बाद में माता पार्वती जी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, वह मस्तक भगवान शिव जी ने पाताल भुवानेश्वर गुफा में रखा। गुफा में आज भी भगवान गणेश के कटे ‍‍शिलारूपी मूर्ति यहां स्थापित है। मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाले शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान भी है। इस ब्रह्मकमल से भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है। मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था।

सृष्टि के अंत का रहस्य

इस गुफाओं में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं। इनमें से एक पत्थर जिसे कलयुग का प्रतीक माना जाता है, वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा ह। यह माना जाता है कि जिस दिन यह कलयुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलयुग का अंत हो जाएगा।

यहां मिलती है मोक्ष की प्राप्ति

इस गुफा के अंदर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं। जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

कैसे पहुंचें पाताल भुवनेश्वीर

पाताल भुवनेश्वार जाने के कई रास्ते हैं। यहां जाने के लिए ट्रेन से काठगोदाम या टनकपुर जाना होगा। उसके आगे सड़क के रास्ते ही सफर करना होग। आप अल्मोड़ा से पहले गंगोलीहाट शेराघाट, या बागेश्वसर, या दन्या होते जा सकते हैं। टनकपुर, पिथौरागढ़ से भी गंगोलीहाट जा सकते हैं। दिल्ली से बस द्वारा 350 कि.मी. यात्रा कर आप अल्मोड़ा पहुंच कर विश्राम कर सकते है और वहां से अगले दिन आगे की यात्रा जारी रख सकते हैं। रेलवे द्वारा यात्रा करनी हो तो काठगोदाम अन्तिम रेलवे स्टेशन है वहां से आपको बस या प्राइवेट वाहन बागेश्वकर, अल्मोड़ा के लिए मिलते रहते हैं।

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