नमिता बिष्ट
उत्तराखंड जैव विविधता से भरा धनी राज्य है। यहां प्रकृति ने नैसर्गिक सुंदरता के लिए कई वनस्पतियों की भरमार दी है। लेकिन यहां एक ऐसी घास भी पाई जाती है। जिसे छूने भर से लोग डरते हैं, हालांकि औषधीय गुणों में यह काफी आगे है। जी हां….हम बात कर रहे हैं बिच्छू घास की। पहाड़ी क्षेत्रों में 800 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर मिलने वाली यह घास डंक मारने के लिए जानी जाती है। इसके साथ ही यह स्वाद से लेकर आय का भी स्रोत है। तो कहीं यह उत्तराखंड की संस्कृति की पहचान से भी जुड़ी है। आइये जानते औषधीय गुणों से भरपूर इस घास के बारे में…..
क्या है बिच्छू घास
बिच्छू घास सिसुण, कंडाली और नेटल नामों से लोकप्रिय है। इसका बॉटनिकल नाम अर्टिका डाईओका है। गर्म तासीर वाले इस पौधे की दुनियाभर में 250 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। पहाड़ पर 4 हजार फीट से 9 हजार फीट तक के नमी वाले भूभाग में छायादार जगहों में बहुतायत से पायी जाती है। इसके पौधे 4 से 6 फीट के होते हैं। इनमें फूल जुलाई-अगस्त में खिलते हैं। इसकी तासीर गर्म होती है। इसी कारण से इसे खानपान और अन्य खाद्य चीजों में प्रयोग होता है।
बिच्छू जैसा डंक देती है ये घास
बिच्छू घास उत्तराखंड में ज्यादा पाई जाती है। गढ़वाल में इसे कंडाली तो कुमाऊंनी में इसे सिसुण के नाम से जाना जाता है। ये घास गलती से छू जाए तो उस जगह झनझनाहट शुरू हो जाती है। इसके कांटेनुमा रोंए से शरीर में बिच्छू जैसा दर्द होता है। बता दें कि बिच्छू घास में फॉरमिक एसिड भी मौजूद होता है, जो इसके स्टिंगिंग इफेक्ट को डेवलप करता है। पानी में डालने से इसके स्टिंगिंग इफेक्ट की क्षमता बढ़ जाती है। इस वजह से पुराने जमाने में इस घास का इस्तेमाल बच्चों को डराने के लिए किया जाता था। बता दें कि इसके कांटों मे मौजूद हिस्टामीन की वजह से मार के बाद जलन होती थी।
बिच्छू घास के औषधीय गुण
दरअसल हमारे जहन में घर बना चुके खौफ़ के इतर भी बिच्छू घास की एक दुनिया है, जो बड़ी गुणकारी है। मिनरल, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, सोडियम, कैल्शियम, आयरन और विटामिन से भरे इस घास का चिकित्सा क्षेत्र में खासा खूब महत्त्व है। बिच्छू घास का प्रयोग पित्त दोष, शरीर के किसी हिस्से में मोच, जकड़न और मलेरिया के इलाज में तो होता ही है, इसके बीजों को पेट साफ करने वाली दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा किसी भी अर्थराइटिस मरीज के लिए बिच्छू घास काफी कारगर साबित होती है।
पहाड़ी खाने में बिच्छू की विशेष मांग
बिच्छू घास की नर्म पत्तियों का पहाड़ पर साग बनाते हैं। पयर्टकों के लोकल खाने में इसकी विशेष मांग होती है। इनके जब टुक्के निकलते हैं, तो उनकी सब्जी बनाकर भी खाया जाता है। जाड़ों के दिनों में यह शरीर को गरम रखने का भी काम करते हैं। पहले के जमाने में इस घास पर एक ककड़ी जैसा फल लगता था, जिसे पहले के लोग बड़े चाव से खाते थे। गांव में इस घास को उबालकर इसकी सब्जी बनाकर पालतू शाकाहारी जानवरों को भी खिलाई जाती है, जिससे उनका पाचन ठीक रहे। इसके अलावा गर्मी में पहाड़ पर चारे की कमी होती है तो दुधारु पशुओं को बिच्छू घास खिलाई जाती है। इससे दुधारु पशु ज्यादा दूध देते हैं।
समय के साथ बदला तरीका
बिच्छू घास से एक धार्मिक महत्व भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इसकी जड़ों से बनी अंगूठी पहनने से शनि का प्रभाव कम होता है। साथ ही तांत्रिक विद्या में भी काम आता है, माना जाता है कि इसके रखने से घरों में भूत-प्रेत नहीं आते है। आज के समय में बिच्छू घास को हर्बल टी बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। जंगलों में उगने वाली बिच्छू घास से उत्तराखंड में जैकेट, शॉल, स्टॉल, स्कॉर्फ व बैग तैयार किए जाते हैं। जिनकी देश-विदेश में भारी मांग होती है। वहीं बिच्छू घास के रेशे से बनी चप्पलें दुनिया में छा रही है।