New Delhi: उत्तराखंड के जंगलों की आग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम बारिश) या ‘इंद्रदेव पर निर्भरता’ उत्तराखंड के जंगलों में आग की बढ़ती घटनाओं का सही समाधान नहीं है, अधिकारियों को इससे निपटने के लिए एहतियाती उपाय करने होंगे। राज्य सरकार ने राज्य में जंगल की भीषण आग पर काबू पाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में कोर्ट को जानकारी देते हुए कहा कि आग की घटनाओं के कारण राज्य का केवल 0.1 प्रतिशत वन्यजीव क्षेत्र प्रभावित हुआ है।
राज्य सरकार ने जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ को बताया कि पिछले साल नवंबर से राज्य में जंगल में आग लगने की 398 घटनाएं हुई हैं और इनमें पांच लोगों की मौत हुई है। उत्तराखंड के उपमहाधिवक्ता जतिंदर कुमार सेठी ने पीठ को बताया कि सभी घटनाएं ‘मानव-निर्मित’ थीं, उन्होंने कहा कि जंगल की आग के मामले में 388 आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं और उनमें 60 लोगों को नामजद किया गया है।
उन्होंने कहा कि ‘‘लोग कहते हैं कि उत्तराखंड का 40 फीसदी हिस्सा आग से जल रहा है, जबकि इस पहाड़ी राज्य में वन्यजीव क्षेत्र का केवल 0.1 फीसदी हिस्सा ही आग की चपेट में है और ये सभी मानव-निर्मित थे, नवम्बर से लेकर आज तक जंगल में आग की 398 घटनाएं हुई हैं, सभी मानव-निर्मित थी।’’ उपमहाधिवक्ता ने पीठ के समक्ष अंतरिम स्थिति रिपोर्ट भी रखी, जिसमें जंगल की आग से निपटने के लिए अधिकारियों की तरफ से उठाये गये कदमों का ब्योरा भी दिया गया था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि “अब मुझे लगता है कि अदालत ने इसे गंभीरता से लिया है। दरअसल, उत्तराखंड राज्य पिछली बार ऑनलाइन पेश हुआ था, लेकिन अदालत ने जोर देकर कहा कि उन्हें कोर्ट में आना चाहिए। वो आज पेश हुए और कुछ अंतरिम स्थिति रिपोर्ट वगैरह पेश की है, जिसे कोर्ट ने सीईसी से चेक करने के लिए कहा है। सीईसी को सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण संबंधी मामलों के लिए नियुक्ति किया है। हम सभी को सीईसी को भी जरूरी पेपर देने और आपस में पेपर शेयर करने को कहा गया है। इस मामले पर अब बुधवार को सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे बेहद गंभीर मामला माना है और कहा है कि इसकी निगरानी की जरूरत है। साथ ही, कोर्ट ने ये भी माना कि इस मामले में उसका हस्तक्षेप जरूरी हो गया है और चीजें उतनी अच्छी नहीं हैं, जितनी उत्तराखंड राज्य सरकार की तरफ से पेश की जा रही हैं।”