उत्तराखंड के देहरादून का एक गांव अब केवल इतिहास के पन्नों में ही पड़ा और देखा जाएगा। क्योंकि इस गांव ने सोमवार शाम को हमेशा के लिए जल समाधि ले ली है। यह गांव हैं लोहारी गांव जहां कभी 71 से ज्यादा परिवार रहा करते थे। अब यह गांव हमेशा के लिए बांध की झील में जलमग्न हो गया है।
व्यासी जल विद्युत परियोजना
दरअसल 1972 में व्यासी जल विद्युत परियोजना की आधारशिला रखी गई थी। जिसके बाद यह पूरा इलाका बांध परियोजना के डूब क्षेत्र में आ गया था। सरकार ने उस समय गांव वालों को विस्थापित करने और मुआवजा भी दिया। ऐसे में व्यासी जल विद्युत परियोजना को सबसे पहले जेपी कंपनी ने बनाया लेकिन साल 1990 में एक पुल के टूटने के कारण यह डैम फिर से अधर में लटक गया। जिसके बाद NTPC कंपनी ने इस बांध को बनाने का ठेका लिया और लंबी जद्दोजहद के बाद यह डैम फिर से अधर में लटका रहा। वहीं, साल 2012 में उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार आने के बाद यह डैम उत्तराखंड जल विद्युत निगम को दिया गया। हालांकि, इस परियोजना का काम लगभग पूरा काम हो चुका है और जल्द ही उत्पादन भी शुरू हो जाएगा। यही वजह है कि अप्रैल 2022 में प्रशासन ने लोहारी गांव के लोगों को नोटिस दिया कि यह गांव कब खाली कर दिया जाए। प्रशासन के नोटिस देने के बाद उत्तराखंड जल विद्युत निगम ने धीरे धीरे पानी की मात्रा बढ़ानी शुरू कर दी, जिसके बाद रविवार से डैम के झील का पानी लोहारी गांव के खेतों तक पहुंच गया। और सोमवार शाम तक पूरा गांव ने ही जल समाधि ले ली।
एक हफ्ते पहले प्रशासन ने दिया नोटिस
लोहारी गांव के लोगों को लगभग एक हफ्ते पहले प्रशासन ने नोटिस दिया था कि गांव जल्दी जल समाधि ले लेगा। इसलिए इस गांव को सभी ग्रामीण छोड़ दें। अभी यहां पर सिर्फ 35 लोग ही मौजूद है जो गांव से बमुश्किल 100 मीटर की दूरी पर पूर्व प्राथमिक विद्यालय में शरण लिए हुए बैठे हैं। चूंकि, ग्रामीण भी जानते हैं कि अब उनका पूरा गांव जलमग्न हो चुका है। यहां रहना अब खतरे से खाली नहीं है लेकिन फिर भी वह जमीन छोड़ना नहीं चाहते हैं।
नहीं मिला कोई मुआवजा- ग्रामीण
प्रभावितों का आरोप है कि शासन प्रशासन ने उन्हें कोई मुआवजा राशि नहीं दी गई, ना ही उन्हें विस्थापन किया गया। जिससे उनके लगभग 35 घर बेघर हो गए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि 2 दिन पूर्व शासन प्रशासन ने उनका घर खाली करवा दिया। उन्होंने कहा कि उनका सामान, बच्चे और मवेशियों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई। शासन-प्रशासन ने उनसे जमीन के बदले जमीन देने का वायदा किया था। लेकिन शासन प्रशासन अपनी जबान से मुकर गया। उन्होंने कहा कि उन्हें खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर है।