जोशीमठ में भू-धंसाव से खतरे में 22,000 आबादी की जान, सर्द रात में विस्थापन की मांग पर गुस्साए लोगों ने निकाला जूलूस

उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव ने अब विकराल रूप ले लिया है। जिससे लोगों को चौतरफा खतरा उत्पन्न हो गया है। स्थिति यह है कि भू-धंसाव ने अब सभी वार्डों को चपेट में ले लिया है। बुधवार को जोशीमठ से 66 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया गया। अब तक 77 परिवारों को शिफ्ट किया जा चुका है। लोग बेहाल हैं और सरकार को समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें। उधर, गुस्साए लोगों ने एक डिग्री सेल्सियस तापमान में रात को हाड कंपाने वाली ठंड में मशाल जुलूस निकालकर विरोध प्रदर्शन किया और सरकार से स्थाई समाधान की मांग की है। इस दौरान लोगों ने शहर के अस्तित्व पर आए संकट के लिए एनटीपीसी को जिम्मेदार ठहराया है। इसके साथ ही एनटीपीसी जल विद्युत जैसी बड़ी परियोजनाओं के तहत विकास कार्यों को क्षेत्र में न किए जाने की मांग की है।

 

बागवानी को नुकसान

मकान और खेतों में दरारें आने के बाद अब हाईटेंशन लाइन के खंभे भी तिरछे हो गए हैं। इससे आसपास के घरों को खतरा पैदा हो गया है। साथ ही खेतों में लगाए माल्टे व सेब के पेड़ दरार गहरी होने के कारण गिरने शुरू हो गए हैं।

 

विशेषज्ञ दल करेगा जांच

उधर, राज्य सरकार पूरे मामले पर नजर बनाए हुए है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर बृहस्पतिवार को विशेषज्ञों का एक दल जोशीमठ रवाना हुई।

 

विशेषज्ञ दल में यह हैं शामिल

जोशीमठ जाने वाले विशेषज्ञ दल में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) से डॉ. पीयूष रौतेला, उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र (यूएलएमएमसी) से डॉ. शांतनु सरकार, आईआईटी रुड़की से प्रो. बीके महेश्वरी, जीएसआई से मनोज कास्था, डब्ल्यूआईएचजी से डॉ. स्वपना मित्रा चौधरी और एनआईएच रुड़की से डॉ. गोपाल कृष्णा को शामिल किया गया है। इससे पहले विशेषज्ञों का यह दल 16 से 20 अगस्त 2022 के बीच जोशीमठ को दौरा कर पहली रिपोर्ट सरकार को सौंप चुका है। यह टीम अगले कुछ दिन जोशीमठ में ही रहकर सर्वेक्षण का कार्य करेगी। इस दौरान दीर्घकालिक और तात्कालिक उपायों के संबंध में टीम सरकार को रिपोर्ट देगी।

 

पहले विशेषज्ञों ने यह दी थी रिपोर्ट

विशेषज्ञों के अनुसार जोशीमठ में भू-धंसाव का कारण बेतरतीब निर्माण, पानी का रिसाव, ऊपरी मिट्टी का कटाव और मानव जनित कारणों से जल धाराओं के प्राकृतिक प्रवाह में रुकावट है। शहर भूगर्भीय रूप से संवेदनशील है, जो पूर्व-पश्चिम में चलने वाली रिज पर स्थित है। शहर के ठीक नीचे विष्णुप्रयाग के दक्षिण-पश्चिम में, धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों का संगम है। नदी से होने वाला कटाव भी इस भू-धंसाव के लिए जिम्मेदार है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *