Kanwar Yatra 2022: हरिद्वार में कांवड़ मेले की शुरूआत, यहां रूट रहेंगे डायवर्ट, पढ़िए पूरी खबर

भगवान शिव का प्रिय महीना सावन आज से शुरू हो गया है। इसके साथ ही सावन का प्रमुख पर्व कावड़ मेले की भी शुरूआत हो चुकी है। हरिद्वार में देश के अलग अलग हिस्सों से कांवड़ियों का आने का सिलसिला शुरू हो गया है। दो साल बाद एक बार फिर देश भर के शिव भक्त कांवड़ यात्रा पर निकल रहे हैं। अब ये रोक नहीं है तो इस साल देश के कई राज्यों में कांवड़िए बम-बम भोले, हर-हर महादेव, बोल-बम जैसे जयकारे लगाते कांवड़ लटकाए दिखेंगे।

एक पखवाड़े तक चलने वाली कांवड़ यात्रा के तहत भारी संख्या में कावड़िये सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करके या डाक कावड़ के जरिए पवित्र गंगाजल लेने उत्तराखंड के हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री धाम, और ऋषिकेश पहुंचते हैं और अपने-अपने इलाकों के शिवालयों में त्रयोदशी के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।

गौरतलब हो कि कोरोना वायरस महामारी की वजह से इस बार 2 साल बाद कांवड़ यात्रा हो रही है। इस बार चार करोड़ से अधिक कांवड़ियों के आने का अनुमान है, जिसे देखते हुए पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किया है। बता दें कि हरिद्वार में 26 जुलाई तक कावड़ मेले का आयोजन किया जायेगा। कांवड़ मेला को लेकर हरिद्वार पुलिस ने यातायात प्लान भी जारी किया है। इस प्लान के मुताबिक ही हरिद्वार में वाहनों की पार्किंग की जाएगी। साथ ही रूट भी डायवर्ट रहेंगे। ऐसे में फजीहत से बचने के लिए यातायत प्लान देखकर ही बाहर निकलना सही होगा।

कैसे हुई थी कांवड़ यात्रा की शुरुआत

माना जाता है कि सबले पहले श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते समय जब वह हिमाचल के ऊना में थे तब उनसे उनके माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा के बारे में बताया। उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठाया और हरिद्वार लाकर गंगा स्नान कराए। वहां से वह अपने साथ गंगाजल भी लाए। माना जाता है तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।

समुद्र मंथन से हुई कांवड़ की शुरूआत

वहीं, यह भी माना जाता है कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन के समय हुई थी। मंथन से निकले विष को पीने की वजह से शिव जी का कंठ नीला पड़ गया था और तब से वह नीलकंठ कहलाए। इसी के साथ विष का बुरा असर भी शिव पर पड़ा. विष के प्रभाव को दूर करने के लिए शिवभक्त रावणव ने तप किया। इसके बाद दशानन कांवड़ में जल भरकर लाया और पुरा महादेव में शिवजी का जलाभिषेक किया. इसके बाद शिव जी विष के प्रभाव से मुक्त हुए।

परशुराम ने शिव पर चढ़ाया था कांवड़ का जल

ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव पर सबसे पहले कांवड़ चढ़ाने की शुरुआत भगवान परशुराम ने की। कुछ कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने अपने आराध्य देव शिव के नियमित पूजन के लिए पुरा महादेव में मंदिर की स्थापना कर कांवड़ में गंगाजल से पूजन कर कांवड़ परंपरा की शुरुआत की।

कांवड़ यात्रा का महत्व

हिंदू धर्म की मान्यता के मुताबिक चतुर्मास में पड़ने वाले श्रावण के महीने में कांवड़ यात्रा का बड़ा महत्व है। सावन जप, तप और व्रत का महीना है। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा-अर्चना, सोमवार के व्रत और कांवड़ियों के शिवलिंग के जलाभिषेक करना विशेष महत्व रखता है। माना जाता है कि शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। उन्हें केवल एक लोटा जल चढ़ा कर प्रसन्न किया जा सकता है। वहीं यह भी मान्यता है कि शिव बहुत जल्दी क्रोधित भी होते हैं। लिहाजा ऐसी मान्यता भी है कि इस कांवड़ यात्रा के दौरान मांस, मदिरा, तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए और न ही कांवड़ का अपमान (ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए) किया जाना चाहिए। शिवलिंग के जलाभिषेक के दौरान भक्त पंचाक्षर, महामृत्युंजय आदि मंत्रों का जप भी करते हैं। कांवड़ यात्रा शिवो भूत्वा शिवम जयेत यानी शिव की पूजा शिव बन कर करो को चरितार्थ करती है। यह समता और भाईचारे की यात्रा भी है।

कांवड़ का वैज्ञानिक महत्व

वैज्ञानिकों के अनुसार कांवड़ यात्रा से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। प्रकृति के इस खूबसूरत मौसम में जब चारों तरफ हरियाली छाई रहती है तो कांवड़ यात्री भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिए पैदल चलते हैं। पैदल चलने से हमारे आसपास के वातावरण की कई चीजों का सकारात्मक प्रभाव हमारे मनमस्तिष्क पर पड़ता है। चारों तरफ फैली हरियाली आंखों की रोशनी बढ़ाती है। वहीं ओस की बूंदे नंगे पैरों को ठंडक देती हैं तथा सूर्य की किरणें शरीर को रोगमुक्त बनाती हैं। ये यात्रा प्रकृति और मानव के संबंधों में नई उष्मा, निकटता एवं प्रेम को बढ़ाती है। डॉक्टरों के मुताबिक  धार्मिक चेतना से मानव जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कांवड़ यात्रा स्वास्थ्यप्रद होती है। पैदल, नाचते-गाते और दौड़ लगाते हुए शिवभक्त जाते हैं। इससे शरीर में खुशी के हार्मोंस जेनरेट होते हैं। व्यक्ति तनाव मुक्त हो जाता है। पैदल चलने से मांसपेशियां मजबूत होती हैं और हार्ट और फेफड़ों को शुद्ध ऑक्सीजन मिलती है।

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