घी बेचकर कैसे पहाड़ का मालदार बना करोड़पति

नमिता बिष्ट

देश के सबसे अमीर उद्योगपतियों में टाटा, बिरला, अड़ानी, अंबानी को तो सभी जानते है। लेकिन क्या आप उत्तराखंड के पहले अरबपति के बारे में जानते हैं। जिसकी सम्पत्ति के निशान भारत के साथ ही नेपाल तक थे। यहां तक की उनकी सूझबूझ की अंग्रेजी हुकूमत भी प्रशंसक थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं पहाड़ के पहले अरबपति के रूप में प्रसिद्ध दान सिंह बिष्ट की।  अकूत सम्पत्ति के कारण ही उनका नाम ‘मालदार’ पड़ गया था। इतना ही नहीं दान सिंह ने बच्चों को शिक्षित करने के लिए कई स्कूल और कॉलेज खुलवाए और कई बच्चों को स्कॉलरशिप भी दी थी।

बचपन से ही मालदार नहीं थे दान सिंह

आज से करीब आधी सदी पहले देश के अरबपतियों के साथ पिथौरागढ़ के दान सिंह ‘मालदार’ का नाम भी आता था। दान सिंह बचपन से ही मालदार नहीं थे। उनका बचपन गरीबी में बीता था। लेकिन अपनी सूझबूझ से उन्होंने बड़ा साम्राज्य खड़ा किया। कहा जाता है कि उन्होंने कई गांव तक खरीद लिए थे। यहां तक की कई शहर और रजवाड़ों की रियासत तक खरीद ली थी। दान सिंह ने जिस भी व्यापार में कदम रखा वहां सफलता ने उनके कदम चूमे। उनके व्यापार की सूझबूझ की अंग्रेजी हुकूमत भी प्रशंसक थी।

नेपाल से आकर बसे थे पिथौरागढ़

दान सिंह बिष्ट का जन्म 1906 में देव सिंह बिष्ट के घर में हुआ। उनके पिता देव सिंह बिष्ट भारत और नेपाल बॉर्डर पर नेपाल के कस्बा जूलाघाट में अपनी छोटी सी दुकान में घी बेचा करते थे। वह मूल रूप से नेपाल के बैतड़ी जिले से थे। बाद में वह पिथौरागढ़ के क्वीतड़ गांव में आकर बस गए।  दान सिंह बचपन से ही एक तेज बुद्धि के बालक थे। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के चलते उन्होंने पढ़ाई नहीं की।

घी बेचकर खरीदा चाय बागन

दान सिंह ‘मालदार’ लकड़ी के व्यापार में उतरे और‘टिम्बर किंग ऑफ इंडिया’ कहलाए। बता दें कि दान सिंह जब 12 साल के थे तब वह लकड़ी का व्यापार करने वाले एक ब्रिटिश व्यापारी के साथ बर्मा जो वर्तमान में म्यांमार, चले गए। वहां उन्होंने ब्रिटिश व्यापारी के साथ लकड़ी व्यापार की बारीकियां समझीं। वहीं बर्मा से लौटने के बाद उन्होंने पिता के साथ घी बेचने का काम किया। घी बेच कर दान सिंह ने अच्छे रुपये कमाए और बेरीनाग में चाय का बगान खरीद लिया। उनके लगाए चाय बागनों की चाय की महक यूरोप तक पहुंची। 

भारत से नेपाल तक फैली थी सम्पत्ति

तब भारत सहित पूरी दुनिया में चाय के लिए चीन का बोलबाला था। दान सिंह ने चीन से ही चाय तैयार करना सीखा और उसे ही पछाड़ दिया। बेरीनाग की चाय का स्वाद देश के साथ ही विदेश में भी पसंद किया जाने लगा। इसके बाद उन्होंने कड़ी मेहनत के दम पर लकड़ी समेत अन्य व्यापारों में नाम कमाया। 1924 में उन्होंने ब्रिटिश इंडियन कॉपरेशन लिमिटेड नामक कंपनी से शराब की भट्टी खरीदी और यहां पर अपने परिवार के लिए बंगला, कार्यालय और कर्मचारियों के रहने के लिए आवास बनाए। इसे बिस्टअ स्टेंट के नाम से जाना जाता था। बता दें कि दान सिंह बिष्ट का व्यापार जम्मू कश्मीर से लाहौर तक और पठानकोट से वजीराबाद तक फैला था। उत्तरांखंड के पिथौरागढ़, टनकपुर, हल्द्वानी, नैनीताल जिले और असम और मेघालय में उनकी सम्पत्ति थी। इसके अलावा काठमांडू में भी उनकी सम्पत्ति थी।

दिल खोल कर करते थे दान

दान सिंह ने साल 1945 में मुरादाबाद के राजा गजेन्द्र सिंह की जब्त हुई संपत्ति को 2,35,000 रुपये में खरीदी। जिसके बाद वह चर्चा में आ गए थे। दान सिंह दिल के भी अमीर थे। वो दिल खोल कर दान दिया करते थे। जन कल्याण के लिए उन्होंने कई स्कूल, अस्पताल और खेल के मैदान बनवाए। उन्होंने अपनी मां के नाम पर छात्रों के लिए सरस्वती बिष्ट छात्रवृत्ति ट्रस्ट की शुरुआत की। उन्होंने कई बच्चों की पढ़ाई में भी मदद की। उन्होंने 1951 में नैनीताल वेलेजली गर्ल्स स्कूल को खरीदा और इसका पुर्ननिर्माण कराया। दान सिंह ने अपने स्वर्गीय पिता के नाम से यहां कॉलेज की शुरुआत की।

दान सिंह के निधन के बाद सिमट गया व्यापार

10 सितंबर 1964 को दान सिंह मालदार का निधन हो गया। दान सिंह बिष्ट का कोई बेटा नहीं था। निधन के दौरान उनकी बेटियां कम उम्र की थीं, जिस वजह से उनकी कंपनी डीएस बिष्ट एंड संस की जिम्मेदारी छोटे भाई मोहन सिंह बिष्ट और उनके बेटों ने संभाली। जिसके बाद उनका खड़ा किया हुआ विशाल व्यापार साम्राज्य सिमटता चला गया। बता दें कि दान सिंह के जीवन पर जगमणि पिक्चर्स द्वारा एक हिंदी फिल्म भी बनाई गई थी। जिसके लिए दान सिंह से ही 70 हजार रुपये उधार लिए थे।

2 thoughts on “घी बेचकर कैसे पहाड़ का मालदार बना करोड़पति

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