नमिता बिष्ट
देवभूमि उत्तराखण्ड सदैव ही अपनी सभ्यता, परंपरा और प्राकृतिक आध्यात्मिक सौंदर्य के लिए विश्वविख्यात रही है। यहां विभिन्न संस्कृातियों और परंपराओं का संगम देखने को मिलता है। यहां आज भी गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के लोगों ने अपनी अनोखी परंपराएं सहेजे रखी हैं। आज हम आपको गढ़वाल में जौनसार-बावर क्षेत्र की ऐसी ही परंपरा के बारे में बता रहे हैं, जहां दुल्हन के बरात लेकर दूल्हे के यहां आने की परंपरा अनूठी तो हैं ही साथ ही वह समाज को संदेश भी देती हैं।
जौनसार-बावर में शादी की परंपराएं
जौनसार-बावर क्षेत्र राजधानी देहरादून से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां के लोगों को पांडवों का वंशज माना जाता है। जौनसार-बावर के रीति-रिवाज और परंपराएं भी काफी अलग हैं। यहां होने वाले विवाह की चर्चा देशभर में होती है और इससे समाज को सकारात्मरक संदेश भी मिलता है। यहां होने वाले विवाह में दूल्हे वाले नहीं बल्कि दुल्हन वाले बराती होते हैं। इसी तरह की परंपरा हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में भी देखने को मिलती है।
दूल्हे के घर पर बारात लेकर आती है दुल्हन
जौनसार बावर क्षेत्र की बोली में विवाह को जोजोड़ा कहा जाता है। जिसका अर्थ है- जो जोड़ा उस भगवान ने बनाया। वहीं बरातियों को जोजोड़िये कहते हैं। सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी कई इलाकों में जारी है। विवाह के दिन दुल्हन पक्ष के लोग ढोल-नगाड़ों के साथ दूल्हे के घर बरात लेकर पहुंचते हैं। इस मौके पर यहां लोकगीत मेशाक, जेठा, पटेबाजी. सारनदी टांडा आदि पर लोग खूब झूमते हैं। दूल्हे के घर पर ही पूरे रीति-रिवाजों के साथ शादी की सभी रस्में होती हैं। अगले दिन दुल्हन अपने पति के घर में ही रुक जाती है और बरात लौट आती है।
पीढ़ियों से चली आ रही है परंपरा
जोझोड़े विवाह की परंपरा जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में पीढि़यों से चली आ रही है। परिवार का बड़ा बेटा चाहे कितने ही बड़े पद पर क्यों न हो, उसे इसी रस्मो रिवाज से शादी करनी होती है। जिसे ‘बारिया का जोजोड़ा’ या ‘आग्ला जोजोड़ा’ भी कहते हैं। इसमें न केवल गांव बल्कि पूरे ‘खत’ यानि पट्टी को शादी के उत्सव के लिए आमंत्रित किया जाता है। जौनसार-बावर का क्षेत्र कई छोटी क्षेत्रीय इकाइयों में विभाजित है जिसे ‘खत’ कहा जाता है। एक खत में कई गांव शामिल होते हैं, ‘खत’ वर्तमान प्रशासनिक ढाँचे के जिले के समान होता है। बता दें कि कई रस्में और परंपराएं हैं जो इस शादी के लिए विशिष्ट है। उन रस्मों में से एक को ‘रैणिया जिमाना’ कहते हैं। उस गांव के पुरुषों से विवाह करने वाली महिलाओं को ‘रैणिया’ कहा जाता है।
महिलाओं को दिया जाता है विशेष भोज
जौनसारी समुदाय में महिलाओं को काफी सम्मान और आदर दिया जाता है। आमतौर पर किसी भी परिवार की महिलाएं दूसरे परिवार की शादी में शामिल नहीं होती हैं, जब तक कि उन्हें बहुत सम्मान और आदर के साथ आमंत्रित न किया जाए। पहली शादी के दौरान उस गाँव की सभी ‘रैणियों’ को आमंत्रित किया जाता है और उनके लिए विशेष दावत का आयोजन होता है। यदि कोई महिला गांव में अनुपस्थित है, तो उसका हिस्सा उसके परिवार वालों को दिया जाता है,यहां तक कि अगर कोई महिला गर्भवती है, तो उनके अजन्मे बच्चे का हिस्सा भी दिया जाता है। सभी महिलाएं पारंपरिक कपड़ेपहन कर दावत में शामिल होती है।
शादी में फिजूलखर्ची नहीं
जोझोड़े विवाह में फिजूलखर्ची से बचा जाता है। मैदानी क्षेत्र में जहां शादी समारोह में शामियाना, वेडिंग प्वाइंट, हलवाई आदि के नाम पर लाखों रुपये उड़ाए जाते हैं, वहीं फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाने जौनसार बावर में ग्रामीण मिल-जुलकर हाथ बंटाते हैं। स्थानीय भाषा में इसे रसवाड़ कहा जाता है।
जौनसारी नृत्य का होता है रोमांचक मुकाबला
नृत्य और संगीत किसी भी जौनसारी विवाह उत्सव का एक अभिन्न अंग होता है। हारुल, झेंता, रासो आदि जौनसार के कुछ प्रसिद्ध लोक नृत्य हैं। विवाह के दौरान ये नृत्य स्थानीय वाद्ययंत्रों जैसे ढोल, दमाणा, रणसिंघा आदि के साथ पंचायत-आँगन में किए जाते हैं। शादी के अगले दिन दूल्हे के गांव के आंगन में दूल्हे और दुल्हन को हमारी पारंपरिक हारुल पे नचवाया जाता है इसके साथ ही जोजोड़िये और दूल्हे पक्ष के लोगों में जौनसारी नृत्य का रोमांचक मुकाबला भी होता है।
दहेज मे मात्र पांच वस्तुएं
जौनसार बावर में दहेज के नाम पर मात्र पांच वस्तुएं काठ का संदूक, बिस्तर, बंठा, परात व थाली देने का रिवाज है। स्थानीय भाषा में इसे पाइंता कहते हैं। जोझोड़े विवाह में गांव के बाजगी, बढ़ई, लोहार आदि को अलग से शादी का हिस्सा देने की परंपरा है। इसे स्थानीय भाषा में कुणभोज कहते हैं।