यहां भगवान शिव के साथ होती है रावण की पूजा, जानें वजह

नमिता बिष्ट

5 अक्टूबर को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक पर्व दशहरा मनाया जाएगा। इस दिन भारत के सभी हिस्सों में रावण के साथ कुंभकर्ण व मेघनाथ के पुतलों का दहन करने की परंपरा है। लेकिन उत्तराखंड के चमोली जिले में एक क्षेत्र ऐसा है जहां रावण की पूजा होती है और दशहरे पर रावण के पुतले का दहन नहीं होता है। यहां आज भी रावण से जुड़ी कई निशानियां मौजूद है।

बैरासकुंड में शिव के साथ रावण की पूजा
चमोली के परगना दशोली के अन्तर्गत नन्दप्रयाग से 10 किलोमीटर की चढ़ाई पर बैरासकुंड गांव है। यहां भगवान शिव का मंदिर है। यहीं पर दशानन रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए 10 हजार साल तक तपस्या की और अपने नौ शीश समर्पित किए। आज भी यहां रावण शिला और यज्ञ कुंड है। यहां शिव के साथ रावण की पूजा भी होती है।

रावण ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी
लंकापति रावण भगवान शिव का बड़ा भक्त था। स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार यहां रावण ने भगवान शिव को खुश करने के लिए तपस्या के दौरान अपने नौ सिर यज्ञ कुंड को समर्पित कर दिए थे। जैसे ही वह अपने 10वें सिर की आहूति देने लगा तो भगवान शिव प्रकट हुए और खुश होकर रावण को मनवांछित वरदान दिया। इस दौरान रावण ने भगवान शिव से इस स्थान पर हमेशा के लिए विराजने का वरदान मांगा था। तब से इसे भगवान शिव का स्थान माना जाता है।

रावण से जुडी कई निशानियां मौजूद
स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां रावण की तपस्या से जुड़ी कई पौराणिक और पुरातत्व महत्व की चीजें आज भी मौजूद हैं। उनका कहना है कि जब भी यहां आस-पास के क्षेत्रों में खुदाई की जाती है तो प्राचीन पत्थर निकलते हैं। कुछ समय पहले यहां एक खेत में खुदाई की गई थी। जहां से एक और कुंड मिला था।

दशानन के नाम से पड़ा दशोली
मान्यता है कि रावण ने यही पर नाड़ी विज्ञान और शिव स्त्रोत की रचना की थी। बैरासकुंड में शिव दर्शनों को आने वाले श्रद्धालु रावण को भी श्रद्धा से देखते हैं। कुंड के पास रावण शिला है। यहां रावण की भी पूजा होती। ऐसा कहा जाता है कि पूरे क्षेत्र का नाम दशानन के नाम से दशोली पड़ा। दशोली शब्द रावण के 10 सिर का अपभ्रंश है।

नहीं होता दशहरे पर रावण के पुतले का दहन
आज भी दशोली क्षेत्र में रामलीला की शुरुआत रावण के तप और शिव के उसे वरदान देने से होती है। इसके बाद ही राम के जन्म की लीला का मंचन होता है। खास बात यह है कि इस क्षेत्र में दशहरे पर रावण के पुतले का दहन नहीं होता है।

ऐसे पहुंचें यहां तक
सबसे पहले आप ऋषिकेश से बदरीनाथ हाइवे पर 198 किलोमीटर की दूरी तय कर चमोली जनपद के नंदप्रयाग तक पहुंचें। नंदप्रयाग से वाहन से 24 किलोमीटर की दूरी तय कर गिरी पुल होते हुए बैरासकुंड तक पहुंचें।

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